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દીપોત્સવી અંક ]
શ્રી હરિભદ્રસૂરિ
[५]
वे उस पर कुछ चिह्नोंका परिवर्तन कर (जनेउ आदिकी रेखा खींचकर) पांव रखकर चले गये, बौद्धाचार्य भलीभांति सम्झ गया कि ये दोनों जैन हैं, और उन्हें कपटसे मरवा देनेका निश्चय किया । हंस और परमहंस भी वहांसे गुप्त रूपसे निकल भागे, परन्तु बौद्धोंकी सेना भी उन्हें मारडालनेके लिये पीछे पड़ गई, दोनों भाइयोंमेंसे हंसकी तो रास्तेमें ही क्रूरतापूर्वक हत्या कर दी गई। और दूसराभाई भी उस गांवके पास ही, जहांपर श्री हरिभद्रसूरिजी रहते थे, मारा गया ।
श्री हरिभद्रसूरिजीको जब यह दुःखप्रद समाचार मिला, तो उन्हें अपने विद्वान शिष्योंके मरजानेका अत्यन्त दुःख हुआ, उनके शान्त हृदयमें क्रोधकी ज्वाला धधक उठी, उन्होंने अपनी मंत्रशक्तिसे सम्पूर्ण बौद्ध सैन्यका मारडालनेका विचार किया । यह समाचार उनके गुरु श्री जिनदत्तसूरिको मालूम हुआ तो उन्होंने ११ अपने ही शिष्योंद्वारा समराइच्चकहाकी उपदेशप्रद मूल ३ गाथा कहला भेजी, उससे उनके विचारोंमें फिर परिवर्तन आया, क्रोध शांत हो गया और उन्होंने उन्हीं गाथाओंसे सम्पूर्ण 'समराइचकहा' की रचना की और उक्त क्रोधके लिये गुरुसे प्रायश्चित्त मांगा। उन्होंने प्रायश्चित्तके रूपमें ग्रन्थ रचनेकी आज्ञा दी।
प्रभावकचरितमें भी इस बातकी पुष्टी करते हुए कुछ परिवर्तनके साथ लिखा है कि श्री हरिभद्रसूरिका चित्त अपने प्रिय शिष्योंके वियोगसे दुःखी रहता था। उनका शोक दूर करनेके लिये शासनदेवी अम्बाने प्रत्यक्ष हो कर हरिभद्रसूरिसे कहा-तुम्हारे जैसे निस्पृही व्यक्ति भी मोहमें लिस हैं, यदि दुम्हारी शिष्यसंतति नहीं रही तो ग्रन्थोंका निर्माग कर अपना हृदय शान्त करो और पुस्तकोंकी संतति हो अपने पीछे छोड़ जाओ। . शिष्यविरहकी स्मृति
उक्त घटनासे हग भलीभांति जान सकते हैं कि आचार्य श्री हरिभद्रजीको अपने धुरन्धर विद्वान् शिष्योंका वियोग अत्यन्त दुःखप्रद हुआ, और वह दुःख उनके लिये असहनीय हो
११ इस प्रसंग के लिये यह भी कहा जाता है कि जब हरिभद्रसूरि क्रोधके आवेशमें बौद्धोंको मारनेके लिये तत्पर हुए उस समय उस गांवमें रही हुए एक विदुषी साध्वी ( कहीं कहीं याकिनीमहत्तराका भी उल्लेख है) एक श्राविकाको साथ लेकर प्रतिबोध देनेके लिये गई. आचार्यश्री के पास जाकर कहा-एक मेंडकी अज्ञानतावश पेरके नीचे आकर मर जाय तो उसका प्रायश्चित्त क्या होगा ? आचार्य महाराजने उसके लिये कुछ तपस्या और आलोयणा आदि बताई। इसके बाद साध्वीश्रीने कहा-महाराज! अज्ञानतावश एक मेंडकी पैरके नीचे आकर मर गई उसके लिये यह प्रायश्चित ? और आप जानबूझकर सेंकडों पंचेन्द्रिय जीवों (मनुष्यों) की हत्याके लिये प्रेरित हुए हैं, उसका प्रायश्चित्त क्या होगा ? बस, इसीसे इनके विचारोंमें एकाएक क्षमाभाव आया और उसके प्रायश्चित्तके तौरपर १४४४ ग्रन्थोंका निर्माण किया।
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