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प्रस्तावना
निर्देश किया गया है कि श्रुत के विषयमत अर्थ के एक देश को जो ग्रहण किया करता है उसका नाम नय है । सम्भवत: इसी का अनुसरण करते हुए प्रमाणनयतत्त्वालोक (७-१) में यह कहा गया है कि जो श्रुत नामक प्रमाण के विषयभूत पदार्थ के अन्य अंशों की ओर से उदासीन होकर एक अंश को ले जाता है उस प्रतिपत्ता के अभिप्रायविशेष को नय कहते हैं। यह पूर्वोक्त त. श्लोकवार्तिक (१,३३, ६) के उस संक्षिप्त लक्षण का ही स्पष्टीकरण दिखता है।
नयचक्र (२) प्रौर द्रव्यस्वभावप्रकाशनयचक्र (१७४) में कहा गया है कि वस्तु के अंश को ग्रहण करने वाला जो श्रुत का भेदभुत ज्ञानियों का विकल्प (अभिप्राय) है उसे नय कहा गया है। इसका अभिप्राय पूर्वोक्त त. श्लो. वा. (१, ३३, ६) में निर्दिष्ट लक्षण से भिन्न नहीं है। लगभग यही अभिप्राय पालापपद्धति (पृ. १४५) में निर्दिष्ट नय के लक्षण में देखा जाता है। विकल्परूप में यहां इतना विशेष कहा गया है कि अथवा जो वस्तु को नाना स्वभावों से पृथक् करके एक किसी विवक्षित स्वभाव में ले जाता है-प्राप्त कराता है उसे नय जानना चाहिए।
सूर्यप्रज्ञप्ति की मलयगिरि विरचित वत्ति (१-७, पृ. ३६) में कहा गया गया है कि वक्ता का जो विशेष अभिप्राय वस्तु के प्रतिनियत एक अंश को विषय करता है उसका नाम नय है। इसकी पुष्टि में वहां समन्तभद्रादि के नाम निर्देशपूर्वक 'नयो ज्ञातुरभिप्रायः' (लघीय. ५२) इस वाक्य का उद्धृत किया गया है।
इस प्रकार विविध ग्रन्थकारों ने अपनी रुचि के अनुसार पूर्ववर्ती ग्रन्थों का अनुसरण कर प्रकृत नय के लक्षण को व्यक्त किया है। निष्कर्ष रूप में कुछ लक्षण इस प्रकार हैं१ समन्तभद-विधि-प्रतिषेध में मुख्य का नियामक ।
, स्याद्वाद से विभक्त अर्थ के विशेष का व्यंजक । २. पूज्यपाद- अनेकान्तात्मक वस्तु में विना किसी विरोध के हेतु की प्रमुखता से साध्यविशेष
की यथार्थता प्रगट करने वाला प्रयोग । अनन्तपर्यायात्मक वस्तु की अन्यतम पर्यायविषयक अधिगम के समय निर्दोष हेतु अपेक्षा निरवद्य प्रयोग (सारसंग्रह)।
प्रमाणप्रकाशित अर्थ के विशेष (नित्यानित्यत्वादि) का प्ररूपक । ३ तत्त्वार्थाधिगमभाष्यकार-प्रापक, कारक, साधक, निर्वर्तक, निर्भासक, उपलम्भक अथवा
व्यंजक । ४ नियुक्तिकार-ग्राह्याग्राह्य अर्थ के विषय में यत्नविषयक उपदेश ।। ५ उत्तरा. चाणकार-वस्तु की पर्यायों में सम्भव पर्याय की अपेक्षा वस्तु का अधिगमन । ६ सिद्धसेन दिवाकर-एकदेशविशिष्ट अर्थ को विषय करने वाला। ७ अकलंकदेव-भेदाभेदात्मक ज्ञेय के विषय में भेदाभेदविषयक सापेक्ष अभिप्राय ।
ज्ञाता का अभिप्राय। अवयव को विषय करने वाला। सम्यक् एकान्त ।
प्रमाणप्ररूपित अर्थ की पर्यायों का प्ररूपक । ८ हरिभद्र सूरि-अनन्त पर्यायात्मक वस्तु के एक अंश का परिच्छेद ।
, अनेक धर्मात्मक ज्ञेय के अध्यवसायान्तर का हेतू । ९ वीरसेन-प्रमाणपरिगृहीत अर्थ के एक देश में वस्तु का अध्यवसाय । १० विद्यानन्द-स्वार्थ के एकदेश का निर्णय ।
, श्रुतार्थांश का ज्ञापक । ११ स्वामिकुमार-लोकव्यवहार का प्रसाधक श्रुतज्ञान का विकल्प ।
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