________________ 32 गुणस्थान विवेचन का स्वभाव मीठा होता है, उसीप्रकार कर्मों के अपने-अपने स्वभाव को प्रकृति बंध कहते हैं। * कर्मरूप परिणमित होनेयोग्य पुद्गलों का ज्ञानावरणादि मूल प्रकृतिरूप तथा उसके भेद-उत्तरप्रकतिरूप परिणमन होने का नाम प्रकृति बंध है। 11. प्रश्न : प्रदेश बंध किसे कहते हैं ? उत्तर : जीव के साथ प्रति समय समयप्रबद्धरूप पुद्गल परमाणु कर्मरूप परिणमन करते हैं, उनकी संख्या को प्रदेश बंध कहते हैं। 12. प्रश्न : स्थिति बंध किसे कहते हैं ? उत्तर : ज्ञानावरणादि कर्मरूप परिणमित पुद्गल स्कंधों का आत्मा के साथ एकक्षेत्रावगाहस्थितिरूप कालावधि के बंधन को स्थिति बंध कहते हैं। 13. प्रश्न : अनुभाग बंध किसे कहते हैं ? / उत्तर : ज्ञानावरणादि कर्मों के फल देने की शक्ति विशेष को अनुभाग बंध कहते हैं। 14. प्रश्न : सत्त्व अथवा सत्ता किसे कहते हैं ? उत्तर : अनेक समयों में बंधे हुए कर्मों का विवक्षित काल तक जीव के प्रदेशों के साथ अस्तित्व होने का नाम सत्त्व है। 15. प्रश्न : उदय किसे कहते हैं ? उत्तर : कर्म की स्थिति पूरी होते ही कर्म के फल देने को उदय कहते हैं। 16. प्रश्न : उदीरणा किसे कहते हैं ? उत्तर : जीव के परिणामों के निमित्त से कर्म की स्थिति पूरी हुए बिना ही उदय में आकर फल देने को उदीरणा कहते हैं। * जीव के परिणामों के निमित्त से कर्म के उदयावली के बाहर के निषेकों का उदयावली के निषेकों में आ मिलना उदीरणा है। * अकालपाक को उदीरणा कहते हैं। 17. प्रश्न : उत्कर्षण किसे कहते हैं ? उत्तर : जीव के परिणामों - मित्त पाकर कर्म के स्थिति-अनुभाग