________________ गुणस्थान भूमिका लहसुन आदि जमीकंद के सुई की नोंक जितने टुकड़े में अनंत बादर निगोदिया जीव हैं; अत: वे अभक्ष्य हैं। जीवों की अनन्तता की परीक्षा कैसे संभव है ? यहाँ भी आज्ञा ही शिरोधार्य है। आज्ञानुसार ही इन पदार्थों का त्याग करना हमारा कर्तव्य है।। द्रव्यानुयोग के शास्त्रों के अनुसार पंचास्तिकाय, छह द्रव्य, सात तत्त्व, नव पदार्थ, हितकारी-अहितकारी भाव, बंधमार्ग, मोक्षमार्ग संबंधी सत्यअसत्य का निर्णय अपनी बुद्धि के अनुसार युक्ति/परीक्षा द्वारा कर सकते हैं। गुणस्थान की परिभाषा जानने के पहले ही हमारे मन में एक प्रश्न उत्पन्न होता है, जो निम्न प्रकार है - 1. प्रश्न : हमें गुणस्थान में प्रवेश करना है या गुणस्थान के ज्ञान में ? उत्तर : सर्व संसारी जीवों का गुणस्थान में प्रवेश तो अनादि काल से है ही; क्योंकि संसारी जीव गुणस्थान से रहित होता ही नहीं। संसारी जीव किसी ना किसी गुणस्थान में नियम से रहता ही है, भले वह ज्ञानी हो अथवा अज्ञानी / मात्र सिद्ध जीव ही गुणस्थान से रहित होते हैं; क्योंकि वे स्वभाव साधना से गुणस्थानातीत हो गये हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि सिद्ध जीव वर्तमान काल में गुणस्थानातीत हो गये हैं; परन्तु वे भी पहले संसार अवस्था में गुणस्थानसहित ही थे। __प्रत्येक संसारी जीव भी आत्मस्वभाव की अपेक्षा से तो गुणस्थानातीत, त्रिकाल, शुद्ध, सहजानन्दमय भगवान आत्मा ही है; परन्तु यह अध्यात्म का विषय है, जो यहाँ गुणस्थान के कथन के समय गौण है; त्रिकाली आत्मस्वभाव की यहाँ अभी विवक्षा नहीं है। जहाँ जिसकी विवक्षा होती है, उसकी ही चर्चा करना विवक्षित विषय समझने के लिये उपयोगी होता है। ____ तात्पर्य यह है कि सर्व संसारी जीव गुणस्थान सहित ही होते हैं। इसलिए हमें-आपको गुणस्थान में प्रवेश नहीं करना है; अपितु गुणस्थान विषयक ज्ञान में प्रवेश करना है।