________________ क्षीणमोह गुणस्थान बारहवें गुणस्थान का नाम क्षीणमोह है। श्रेणी के चार गुणस्थानों में क्षीणमोह यह क्षपकश्रेणी का अंतिम गुणस्थान है। एक अपेक्षा से विचार किया जाय तो क्षपकश्रेणी के पूर्ण वीतरागताकी प्राप्तिस्वरूप यह गुणस्थान है। चारित्रमोहनीय कर्म के क्षय का विशेष प्रारंभ तो क्षपक अपूर्वकरण गुणस्थान के प्रथम समय से ही हो गया था और वह क्षय का कार्य दसवें गुणस्थान के अंतिम समय में कहो अथवा बारहवें गुणस्थान के प्रथम समय में कहो दोनों का एक ही अर्थ है - परिपूर्ण हुआ है। इसी विषय को हम निम्नप्रकार भी समझ सकते हैं - सूक्ष्म लोभ कषाय का व्यय और पूर्ण वीतरागता का उत्पाद दोनों एक समयवर्ती हैं; क्योंकि उत्पाद और व्यय दोनों एक ही समय में होते हैं, यह वस्तु-व्यवस्था का स्वरूप है। ____ अनंतानुबंधी कषाय चौकड़ी की अपेक्षा विचार किया जाय तो चौथे गुणस्थान से लेकर सातवें गुणस्थान पर्यंत जहाँ क्षायिक सम्यक्त्व की प्राप्ति की है, उसी गुणस्थान से चारित्रमोहनीय कर्म के क्षय का प्रारंभ हुआ है; लेकिन यहाँ चारित्र मोहनीय की 21 प्रकृतियों की मुख्यता से कथन किया है। ____ चौदह गुणस्थानों में से अंत के चारों गुणस्थान पूर्ण वीतरागमय हैं; उनमें क्षीणमोह दूसरे क्रमांक का और पूर्ण सुखस्वरूप गुणस्थान है। 103. प्रश्न : मोह कर्म नष्ट हो गया है तो क्या हुआ; अभी ज्ञानावरणादि तीनों घाति कर्मों का उदय सतत चल ही रहा है। अतः क्षीणमोही मुनिराज को पूर्ण सुखी कहना कैसे योग्य होगा ? उत्तर : ग्यारहवें गुणस्थान के प्रारंभ में हमने इस विषय का स्पष्टीकरण किया है। उसे यहाँ के लिए पुनः देखें।