________________ 252 गुणस्थान विवेचन ___44. शंका - आगम का यह अर्थ प्रामाणिक गुरु परंपरा के क्रम से आया हुआ है, यह कैसे निश्चय किया जाय ? समाधान - नहीं; क्योंकि प्रत्यक्षभूत विषय में तो सब जगह विसंवाद उत्पन्न नहीं होने से निश्चय किया जा सकता है और परोक्ष विषय में भी, जिसमें परोक्ष-विषय का वर्णन किया गया है, वह भाग अविसंवादी आगम के दूसरे भागों के साथ आगम की अपेक्षा एकता को प्राप्त होने पर, अनुमानादि प्रमाणों के द्वारा बाधक प्रमाणों का अभाव सुनिश्चित होने से उसका निश्चय किया जा सकता है अथवा ज्ञान विज्ञान से युक्त इस युग के अनेक आचार्यों के उपदेश से उसकी प्रमाणता जानना चाहिये और बहुत से साधु इस विषय में विसंवाद नहीं करते हैं; क्योंकि इस तरह का विसंवाद कहीं पर भी नहीं पाया जाता है। अतएव आगम के अर्थ के व्याख्याता प्रामाणिक पुरुष हैं, इस बात के निश्चित हो जाने से आर्षवचन की प्रमाणता भी सिद्ध हो जाती है। और आर्ष-वचन की प्रमाणता के सिद्ध हो जाने से मन के अभाव में भी केवलज्ञान होता है, यह बात भी सिद्ध हो जाती है। ___45. शंका - सयोगकेवली के तो केवलज्ञान मन से उत्पन्न होता हुआ उपलब्ध होता है ? समाधान - यह कहना भी ठीक नहीं है; क्योंकि जो ज्ञानावरण कर्म के क्षय से उत्पन्न है और जो अक्रमवर्ती है, उसकी पुन: उत्पत्ति मानना विरुद्ध है। ___46. शंका - जिसप्रकार मति आदि ज्ञान स्वयं ज्ञान होने से अपनी उत्पत्ति में कारक की अपेक्षा करते हैं; उसीप्रकार केवलज्ञान भी ज्ञान है, अतएव उसे भी अपनी उत्पत्ति में कारक की अपेक्षा करनी चाहिये ? समाधान- नहीं; क्योंकि क्षायिक और क्षायोपशमिक ज्ञान में साधर्म्य नहीं पाया जाता है। 47. शंका - अपरिवर्तनशील केवलज्ञान प्रत्येक समय में परिवर्तनशील पदार्थों को कैसे जानता है ? समाधान - ऐसी शंका ठीक नहीं है; क्योंकि ज्ञेय पदार्थों के समान परिवर्तन करनेवाले केवलज्ञान के उन पदार्थों के जानने में कोई विरोध नहीं आता है।