Book Title: Gunsthan Vivechan Dhavla Sahit
Author(s): Yashpal Jain, Ratanchandra Bharilla
Publisher: Patashe Prakashan Samstha

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Page 271
________________ 270 गुणस्थान विवेचन 10. पाँचवाँ गुणस्थान चारित्र मोहनीय की 17 प्रकृति के उदय से होता है। (प्रत्याख्यानावरण-४, संज्वलन-४, और नौ नोकषाय)। 11. छठवाँ गुणस्थान संज्वलन व नौ नोकषायों के तीव्र उदय से होता है। 12. सातवाँ गुणस्थान संज्वलन और नौ नोकषायों के मंद उदय से होता है। 13. आठवाँ गुणस्थान संज्वलन और नौ नोकषायों के मंदतर उदय से होता है। 14. नौवाँ गुणस्थान संज्वलन व नौ नोकषायों के मंदतम उदय से होता है। 15. दसवाँ गुणस्थान संज्वलन सूक्ष्म लोभ के उदय से होता है। 16. ग्यारहवाँ गुणस्थान मोहनीय कर्म के सर्वथा उपशम से होता है। 17. बारहवाँ गुणस्थान मोहनीय कर्म के पूर्ण क्षय से होता है। 18. तेरहवाँ गुणस्थान घाति कर्मों के पूर्ण क्षय से होता है। 19. चौदहवाँ गुणस्थान योग के अभाव की अपेक्षा होता है। 5. गुणस्थानों में मूलकर्मों का उदय - 1. ज्ञानावरण कर्म का उदय पहले से बारहवें गुणस्थान पर्यंत होता है। 2. दर्शनावरण कर्म का उदय पहले से बारहवें गुणस्थान पर्यंत होता है। 3. वेदनीय कर्म का उदय पहले से चौदहवें गुणस्थान पर्यंत होता है। 4. मोहनीय कर्म का उदय पहले गुणस्थान से दसवें गुणस्थान पर्यंत होता है। 5. आयु कर्म का उदय पहले गुणस्थान से चौदहवें गुणस्थान पर्यंत होता है। 6. नाम कर्म का उदय पहले गुणस्थान से चौदहवें गुणस्थान पर्यंत होता है। 7. गोत्र कर्म का उदय पहले गुणस्थान से चौदहवें गुणस्थान पर्यंत होता है। 8. अंतराय कर्म का उदय पहले से बारहवें गुणस्थान पर्यंत होता है। 6. गुणस्थानों में मूलकर्मों का सत्त्व - 1. ज्ञानावरण कर्म का पहले से बारहवें गुणस्थान पर्यंत सत्त्व पाया जाता है। 2. दर्शनावरण कर्म का पहले से बारहवें गुणस्थान पर्यंत सत्त्व रहता है। 3. वेदनीय कर्म का पहले से चौदहवें गुणस्थान पर्यंत सत्त्व पाया जाता है। 4. मोहनीय कर्म का पहले से ग्यारहवें गुणस्थान पर्यंत सत्त्व पाया जाता है। 5. आयु कर्म का पहले से चौदहवें गुणस्थान पर्यंत सत्त्व पाया जाता है। 6. नामकर्म का पहले से चौदहवें गुणस्थान पर्यंत सत्त्व पाया जाता है। 7. गोत्रकर्म का पहले से चौदहवें गुणस्थान पर्यंत सत्त्व पाया जाता है। 8. अंतराय का पहले से बारहवें गुणस्थान पर्यंत सत्त्व पाया जाता है। *

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