Book Title: Gunsthan Vivechan Dhavla Sahit
Author(s): Yashpal Jain, Ratanchandra Bharilla
Publisher: Patashe Prakashan Samstha

View full book text
Previous | Next

Page 259
________________ 258 गुणस्थान विवेचन काल अपेक्षा विचार - सादि अनंत काल / सिद्ध अवस्था का प्रारम्भ होता है, अतःउनका काल सादि (स + आदि) है और इस अवस्था का कभी नाश होगा ही नहीं, अतः सर्व सिद्ध भगवान नियम से सादि अनंत ही है। छहढाला शास्त्र के छठवीं ढाल के तेरहवें छन्द में इस विषय को ग्रंथकार ने निम्न शब्दों में कहा है - रहि हैं अनंतानंत काल, यथा तथा शिव परिणये / इस तरह सिद्धों का काल सादि अनन्त होने से काल के जघन्य और उत्कृष्टपने से संबंध ही नहीं है। गमनागमन अपेक्षा विचार - गमन - सिद्ध अवस्था से कहीं ऊपर अन्य उत्कृष्ट अवस्था है नहीं: अतः सिद्ध जीव का अन्यत्र गमन होता नहीं है। इसलिए वे गमन रहित अवस्थित/स्थिर ही रहते हैं। ___आगमन - अयोगकेवली गुणस्थान से इस सिद्धावस्था में आगमन हुआ है, अन्य गुणस्थानों से यहाँ आगमन भी संभव नहीं है। विशेष अपेक्षा विचार - 1. यद्यपि अनंतानंत सिद्ध भगवानों के ज्ञानादि अनंतानंत गुणों की पर्यायों में किंचित् भी अंतर नहीं है; तथापि व्यंजनपर्याय अर्थात् आकार में अन्तर होता है। जीव स्वयं स्वभाव से अमूर्तिक तो है ही। अब सिद्ध दशा में शरीर का अभाव होने से सर्वथा तथा सदा के लिए निराकार एवं अमूर्तिक हो गये हैं। प्रदेशत्व सामान्यगुण की अपेक्षा से कोई न कोई आकार होना बात अलग है और शरीर के अभाव से निराकार होना अलग है। यह निराकारपना प्रदेशत्व गुण का ही कार्य है; तथापि उसे शरीर के अभाव की मुख्यता करके कहा है। इन दोनों के कथन में विरोध नहीं है। इस निराकारपने के कारण ही जिस आकाश के क्षेत्र में एक सिद्ध भगवान विराजमान हैं, उस ही आकाश के क्षेत्र में अन्य अनंत सिद्ध भगवान भी अपनी स्वतंत्र सत्ता से विराजते हैं। यह कार्य अवगाहनत्व प्रतिजीवी गुण का कार्य है। 2. भूतप्रज्ञापन नैगमनय से क्षेत्र, काल आदि द्वारा भी इन सिद्धों में

Loading...

Page Navigation
1 ... 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282