Book Title: Gunsthan Vivechan Dhavla Sahit
Author(s): Yashpal Jain, Ratanchandra Bharilla
Publisher: Patashe Prakashan Samstha

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Page 262
________________ - पुरुषार्थ की अपूर्वता - प्रश्न : सादि मिथ्यादृष्टि जीव प्रगति करके शीघ्रातिशीघ्र मुक्त हो, तो कितने समय में और किस प्रकार मुक्त होता है ? / उत्तर : (1) मिथ्यात्वपर्याय से कुछ कम अर्द्धपुद्गलपरिवर्तनप्रमाण संसार में परिभ्रमण कर अन्तिम भव के ग्रहण करने पर मनुष्य भव में उत्पन्न हुआ। (2) पुन: अन्तर्मुहूर्त काल संसार के अवशेष रह जाने पर तीनों ही तीनों करणों को करके प्रथमोपशम सम्यक्त्व को प्राप्त हुआ। (3) पुन: वेदक सम्यग्दृष्टि हुआ। (4) पुन: अन्तर्मुहूर्त काल द्वारा अनंतानुबंधी कषाय का विसंयोजन करके। (5) उसके बाद दर्शनमोहनीय का क्षय करके (6) पुन: अप्रमत्त संयत हुआ। (7) फिर प्रमत्त और अप्रमत्त गुणस्थान इन दोनों गुणस्थानों संबंधी सहस्रों परिवर्तनों को करके (8) क्षपकश्रेणी पर चढ़ता हुआ अप्रमत्तसंयत गुणस्थान में अध:प्रवृत्तकरण विशुद्धि से शुद्ध होकर (9) अपूर्वकरण क्षपक हुआ। (10) अनिवृत्तिकरण क्षपक हुआ। (11) सूक्ष्मसांपरायिक क्षपक हुआ। (12) क्षीणकषाय वीतरागछद्मस्थ हुआ। (13) सयोगकेवली हुआ। (14) अयोगकेवली होता हुआ सिद्ध हो गया। __इसप्रकार मोक्षमार्ग की साधना में शीघ्रता हो तो 14 अंतर्मुहूर्त में मुक्ति हो जाती है और ये सभी अंतर्मुहूर्त भी एक ही बड़े अंतर्मुहूर्त में आ जाते हैं। इससे स्थूलरूप से यह कह सकते हैं कि सादि मिथ्यावृष्टि भी मिथ्यात्व छोड़कर अर्थात् सम्यग्दृष्टि होकर एक ही अंतर्मुहूर्त में मुक्त हो सकता है। (यह सादि मिथ्यादृष्टि की चर्चा) (देखिए धवला पुस्तक 4, पृष्ठ 336) अनादि मिथ्यादृष्टि के सम्बन्ध में पंडितप्रवर श्री टोडरमलजी ने मोक्षमार्गप्रकाशक ग्रंथ में पृष्ठ क्रमांक 265 पर निम्न शब्दों में कहा है - "देखो, परिणामों की विचित्रता ...! कोई नित्य निगोद से निकलकर मनुष्य होकर मिथ्यात्व छूटने के पश्चात् अंतर्मुहूर्त में केवलज्ञान प्राप्त करता है।"

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