________________ Maa गुणस्थानातीत : सिद्ध भगवान इस दुःखमय संसार अवस्था से कुछ जीव सम्यग्दर्शन प्राप्त करने पर भी अनेक भवों में कठोर और अप्रतिहत साधना करने के बाद ही सिद्धावस्था को प्राप्त करते हैं। अनेक जीव मात्र अनेक वर्षों के साधना से ही सिद्ध हो जाते हैं। विशिष्ट महापुरुष मात्र एक अंतर्मुहूर्त में ही अनंत, ध्रुव, अविचल, पंचमगति को प्राप्त कर लेते हैं। ___113. प्रश्न : हम मात्र अंतर्मुहूर्त में ही सिद्ध होना चाहते हैं। हमें कठोर साधना सुहाती नहीं है और मुक्ति के लिए हम अधिक इंतजार भी नहीं करना चाहते; अतः अति शीघ्र मुक्त होने का सुगम साधन बताइये न! उत्तर : मोक्ष-प्राप्ति का वास्तविक उपाय तो एक मात्र निज शुद्धात्मस्वभाव का निर्विकल्प रीति से स्वीकार अर्थात् अनुभवन एवं लीनता करना ही है, जिसे हमने गुणस्थान के प्रकरण में अनेक बार कहा है। जिनवाणी माता भी हमें चारों अनुयोगों में यत्र तत्र सर्वत्र इसी विषय को समझा रही है। भाईसाहब ! आत्मसाधना के परम पवित्र कार्य के आदि, अंत अथवा मध्य में कहीं भी कष्ट, दुःख या परेशानी नहीं है। सब असह्य परेशानियों को समाप्त करने का एकमात्र सही उपाय पर और परभावों से निरपेक्ष आत्म-साधना ही है। यही एक सुगम व सहज साधन है। जब तक निजात्मस्वभाव का यथार्थ ज्ञान नहीं होता, तब तक इस तरह के अनेक विकल्प/प्रश्न होते ही रहेंगे। इन सबके निराकरण के लिए सर्वज्ञ प्रणीत आगम का अध्ययन मनन-चिंतनादि करना और आत्मज्ञ लोगों का सत्समागम करना ही एक शरण है, आधार है और दूसरा कोई उपाय नहीं है। सब आत्मसाधक यथायोग्य मात्र अंतर्मुहूर्त का आत्म-ध्यान / आत्मलीनता करके ही मुक्ति की प्राप्ति करते हैं, इसमें कुछ मतभेद नहीं है।