Book Title: Gunsthan Vivechan Dhavla Sahit
Author(s): Yashpal Jain, Ratanchandra Bharilla
Publisher: Patashe Prakashan Samstha

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Page 256
________________ 255 गुणस्थानातीत : सिद्ध भगवान यद्यपि इसी विशिष्ट अंतर्मुहूर्त पुरुषार्थ की पूर्णता और उसके फल की प्राप्ति के लिए आदिनाथ जैसे मुनिराज को एक हजार वर्ष लगे, बाहुबली मुनिवर को एक वर्ष लगा और भरत चक्रवर्ती के लिए एक अंतर्मुहूर्त की ही मुनि-अवस्था की साधना पर्याप्त रही; तथापि पुरुषार्थ तो समान ही रहा। सही देखा जाय तो चक्रवर्ती की अव्रत अवस्था में भी अपनी-अपनी भूमिका के अनुसार यथायोग्य आत्म-साधना का पुरुषार्थ सतत चलता ही रहता है; परन्तु स्थूल/बाह्य दृष्टिधारी जगत उसे स्वीकारता नहीं है। ___ जब लौकिक जीवन में भी कदाचित् अपनी इच्छा की पूर्ति होती है तो थोड़ीसी आकुलता मिटती है अर्थात् हमें भी तत्काल ही अल्प सुख का निराकुलता का आभास होता है, तब जहाँ सर्व प्रकार की सर्वथा इच्छाजन्य आकुलता नष्ट हो जाती है, वहाँ अनंत सुख नियम से होगा ही। इसतरह अनुमान से भी सर्व आकुलता रहित सिद्ध जीवों के अनंत सुखी होने का यथार्थ अनुमान ज्ञान हम कर सकते हैं। अनंत सर्वज्ञ प्रणीत आगम परंपरा से तो हमें यह मान्य ही है कि सिद्ध अनन्त सुखी हैं। आचार्यश्री नेमिचंद्र ने गोम्मटसार जीवकाण्ड गाथा 68 में गुणस्थानातीत सिद्ध भगवान की परिभाषा निम्नप्रकार दी है - अट्ठविहकम्मवियला, सीदीभूदा णिरंजणा णिच्चा। अद्वगुणा किदकिच्चा, लोयग्गणिवासिणो सिद्धा / / ज्ञानावरणादिअष्ट कर्म रहित, अनंतसुखामृतस्वादि, परम शांतिमय, मिथ्यादर्शनादिसर्व विकाररहित-निर्विकार, नित्य, सम्यक्त्व आदिआठ प्रधान गुण युक्त, अनंत शुद्ध पर्यायों से सहित, कृतकृत्य, लोकाग्रस्थित, वीतरागी, सर्वज्ञ निकल परमात्मा को सिद्ध भगवान कहते हैं। नाम अपेक्षा विचार - ___ गुणस्थानातीत सिद्ध भगवान को ही व्यवहारातीत, परमशुद्ध, कार्यपरमात्मा, लोकाग्रवासी, संसारातीत, निरंजन, निराकार, निष्काम, निष्कर्म, साध्यपरमात्मा, परमसुखी, ज्ञानाकारी, ज्ञानशरीरी, चिरवासी, अशरीरी इत्यादि अनेक नाम हैं। इन्हें देहमुक्त भी कहते हैं।

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