Book Title: Gunsthan Vivechan Dhavla Sahit
Author(s): Yashpal Jain, Ratanchandra Bharilla
Publisher: Patashe Prakashan Samstha

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Page 224
________________ उपशान्तमोह गुणस्थान 223 की हानि के निमित्त तैं तहाँ - (उपशांत मोह) तैं नाहीं पड़े वा अन्य कोई निमित्त तैं नाहीं पड़े है; ऐसा जानना।" इस वाक्य में संक्लेश-विशुद्ध परिणाम निमित्त नहीं और कर्म की भी निमित्तता का निषेध किया है; क्योंकि मुनिराज जबतक उपशांतमोह गुणस्थान में हैं, तबतक तो किसी भी चारित्र मोहनीय कर्म के उदय का निमित्तपना बनता ही नहीं। जब सूक्ष्म लोभकषाय के उदय का निमित्त बनता है, तब ग्यारहवाँ गुणस्थान ही नहीं रहता, दसवाँ सूक्ष्मसापराय गुणस्थान हो जाता है। अतः उपशांत मोही मुनिवर कर्म के कारण नीचे के गुणस्थान में आये, यह व्यवहार नहीं बन सकता। अतः काल-क्षय ही नीचे के गुणस्थान में आने का कारण बनता है। 101. प्रश्न : इस ग्यारहवें गुणस्थान में क्या मुनिराज का मरण नहीं हो सकता ? उत्तर : उपशांतमोह गुणस्थानवर्ती मुनिराज का अंतर्मुहूर्तकाल में से किसी भी समय में मरण हो सकता है। मरण तो होता है शुद्धोपयोगरूप (ध्यानरूप) अवस्था में और तदनंतर तत्काल ही विग्रहगति के प्रथम समय में चौथा गुणस्थान हो जाता है और वे मनिराज देवगति में ही सौधर्मस्वर्ग से सर्वार्थसिद्धि पर्यंत कहीं भी जन्म लेते हैं। 102. प्रश्न : फिर उपशांत मोह से गिरने के कारण दो हो गये। मात्र एक कालक्षय ही नहीं रहा ? उत्तर : आपका कहना सही है। यदि मरण की अपेक्षा लेते हैं तो उपशांत मोह से गिरने के दो कारण सिद्ध हो जाते हैं / 1. काल-क्षय और 2. भव-क्षय / तथापि सामान्य कारण तो एक मात्र काल-क्षय ही है; क्योंकि भव-क्षयरूप कारण तो कदाचित् किसी मुनिराज के होता है तथा उपशम श्रेणी के अन्य गुणस्थानों में भी हो सकता है। भव-क्षय और आयुक्षय - इन दोनों का एक ही अर्थ है। धवला पस्तक 1 का अंश (पृष्ठ 189 से 190) सामान्य से उपशान्तकषायवीतरागछद्मस्थ जीव हैं / / 19 / / जिनकी कषाय उपशान्त हो गई है, उन्हें उपशान्तकषाय कहते हैं। जिनका राग नष्ट हो गया है उन्हें वीतराग कहते हैं। छद्म ज्ञानावरण और

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