Book Title: Gunsthan Vivechan Dhavla Sahit
Author(s): Yashpal Jain, Ratanchandra Bharilla
Publisher: Patashe Prakashan Samstha

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Page 223
________________ 222 गुणस्थान विवेचन किसी की कुछ नहीं चलती" इत्यादि व्यवहारनय के कथन को सत्यार्थ मानकर अज्ञानी जीव जिनवाणी का ही आधार लेकर मिथ्यात्व को ही पुष्ट करते हैं। इसलिए उपशांत मोही मुनिराज का पतन क्यों होता है; इस विषय का हमें बहुत सावधानीपूर्वक निर्णय करना चाहिए। ____ ग्यारहवें गुणस्थान का स्वरूप यथार्थरूप से समझने हेतु आचार्य श्री नेमिचंद्रकृत लब्धिसार गाथा 310 की संस्कृत टीका का पंडितप्रवर टोडरमलजीकृत हिन्दी अनुवाद निम्नानुसार है “बहुरि या प्रकार संक्लेश-विशुद्धता के निमित्त करि उपशांत कषायतें पड़ना-चढ़ना न हो, जातें तहाँ परिणाम अवस्थित विशुद्धता लिए वर्ते हैं।" स्पष्ट शब्दों में यहाँ आया है कि संक्लेश-विशुद्धता से गिरना-चढ़ना नहीं होता है। आशय यह है कि ग्यारहवें गुणस्थान का जितना यथायोग्य अंतर्मुहूर्त काल है, उतने काल में समय-समय प्रति पूर्ण वीतरागता है; वीतरागता में कुछ हीनाधिकपना नहीं है। ____ ग्यारहवें गुणस्थान के पहले समय से लेकर अंतिम समय पर्यंत चारित्र मोहनीय कर्म का अंतरकरणपूर्वक उपशम होने से वहाँ की विशुद्धता में अन्तर होने में कुछ निमित्त नहीं है, विशुद्धता अवस्थित है। __फिर भी जिज्ञासु के मन में शंका उत्पन्न हो ही जाती है कि उपशांत मोह गुणस्थान से पतित होने का कुछ ना कुछ कारण तो होना ही चाहिए। इसका समाधान लब्धिसार के ही शब्दों में - “बहुरि तहाँ तैं जो पड़ना हो है, सो तिस गुणस्थान का काल पूरा भर पीछे नियम तैं उपशम काल का क्षय होई, तिसके निमित्त तैं हो है" संक्षेप में इतना ही समझाया है कि चारित्रमोहनीय कर्म के उपशम के काल का क्षय होने से ही उपशांत मोही मुनिराज नीचे दसवें सूक्ष्मसापराय गुणस्थान में आते हैं। इस ही विषय का और विशेष खुलासा आया है - “विशुद्ध परिणामनि

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