Book Title: Gunsthan Vivechan Dhavla Sahit
Author(s): Yashpal Jain, Ratanchandra Bharilla
Publisher: Patashe Prakashan Samstha

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Page 228
________________ 227 क्षीणमोह गुणस्थान उत्तर : ज्ञान का उपयोग क्यों नहीं ? मुख्य रीति से ज्ञान का ही उपयोग सुखी होने के लिये है। अल्पज्ञ अवस्था में विकसित ज्ञान से सर्वज्ञ कथित यथार्थ वस्तु-व्यवस्था को जानकर जीव जितना-जितना मोह कम करता जाता है; उतना-उतना सुख उत्पन्न होता जाता है। मोह परिणाम ही दुःख है और निर्मोहपना ही सुख है। __इसी विषय का स्पष्टीकरण मोक्षमार्ग प्रकाशक पृष्ठ 310 पर निम्नानुसार सुबोध शब्दों में किया है ..... निर्णय करने का पुरुषार्थ करे, तो भ्रम का कारण जो मोहकर्म उसके भी उपशमादि हों तब स्वयमेव भ्रम दूर हो जाये; क्योंकि निर्णय करते हुए परिणामों की विशुद्धता होती है, उससे मोह के स्थिति-अनुभाग घटते हैं। 106. प्रश्न : इस विषय के लिए कुछ शास्त्राधार भी है ? उत्तर : हाँ, शास्त्राधार है। जिनधर्म का कोई भी वक्ता हो वह शास्त्राधार से ही बात करता है और करना भी चाहिए / शास्त्र को प्रमाण माने बिना अपनी मति-कल्पना से समझने या समझानेवाला जिनधर्म का यथार्थ वक्ता नहीं हो सकता। शास्त्र कथित विषय को युक्ति से समझाना अलग है और मात्र कल्पना से तर्क तथा युक्ति ही देते रहना अलग बात है। ___ मोक्षमार्गप्रकाशक के तीसरे अध्याय में पृष्ठ 50 पर कहा है - यदि जानना न होना दुःख का कारण हो तो पुद्गल के भी दुःख ठहरे; परंतु दुःख का मूल कारण इच्छा है। ..............मोह का उदय है; वह दुःखरूप ही है। अधिक शास्त्राधार के लिए मोक्षमार्गप्रकाशक ग्रंथ का पष्ठ 6 और 72 का भी अवलोकन करें। यदि अधिक ज्ञान ही सुख का उत्पादक हो तो अल्पज्ञानधारी भावलिंगी मुनिराज से बारह अंगों के धारक असंयमी देवों, तथा ग्यारह अंग एवं नौ पूर्व के द्रव्यलिंगी मुनिराज को भी अधिक सुखी मानने का प्रसंग प्राप्त हो जायेगा। मतिश्रुतावधि ऐसे तीन तथा मतिश्रुतावधिमनःपर्यय ऐसे चार ज्ञान के धारी मुनिराजों को अति सुखी और शिवभूति

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