________________ अयोगकेवली गुणस्थान अयोगकेवली यह अंतिम गुणस्थान है। केवलज्ञान के साथ रहनेवाला यह दूसरा गुणस्थान है। क्षपकश्रेणी के चारों गुणस्थानों के बाद प्राप्त होनेवाला यह दूसरा गुणस्थान है। वीतरागी चारों गुणस्थानों में से यह अन्तिम गुणस्थान है। केवलज्ञानादि अनंत चतुष्टय सहित अरहंत परमात्मा का भी यह दूसरा गुणस्थान है। योगरहित अर्थात् अयोगरूप यह एक ही गुणस्थान है। तेरहवें गुणस्थान के समान यहाँ भी ज्ञान, सुखादि अनंतरूप हैं। अयोगकेवली गुणस्थान भी सकल परमात्मा का ही है। योगों के नष्ट होते ही सयोगकेवली परमात्मा ही अयोगकेवली कहलाने लगते हैं। शरीर में रहते हुये भी योग का निरोध एवं श्वासोच्छवास बंद होने से मन-वचन-काय के निमित्त से होनेवाला आत्मप्रदेशों का कंपन रुक गया है। अतः आत्मा और शरीर का एकक्षेत्रावगाह संबंध होने पर भी निमित्त-नैमित्तिक संबंध का अभाव हो गया है। आचार्यश्री नेमिचन्द्र ने गोम्मटसार जीवकाण्ड गाथा 65 में अयोगकेवली गुणस्थान की परिभाषा निम्नानुसार दी है - सीलेसिं संपत्तो, णिरूद्धणिस्सेसआसवो जीवो। कम्मरयविप्पमुक्को, गयजोगो केवली होदि। सम्पूर्ण शील के ऐश्वर्य से सम्पन्न, सर्व आस्रव निरोधक, कर्म बंध रहित जीव की योगरहित वीतराग सर्वज्ञ दशा को अयोगकेवली गुणस्थान कहते हैं। नाम अपेक्षा विचार सयोगी जिन इस एक नाम को छोड़कर पूर्वोक्त तेरहवें गुणस्थान में कहे हुये सर्व नामों का यहाँ भी व्यवहार होता है। जैसे - अरिहंत, अरहंत, अरुहंत, केवली, परमात्मा, सकल परमात्मा, परमज्योति, निष्कम्प, परमात्मा आदि।