Book Title: Gunsthan Vivechan Dhavla Sahit
Author(s): Yashpal Jain, Ratanchandra Bharilla
Publisher: Patashe Prakashan Samstha

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Page 249
________________ 248 गुणस्थान विवेचन 111. प्रश्न : अयोगकेवली को सकलपरमात्मा कहने में दोष आता है क्या ? उत्तर : कुछ दोष नहीं आता; क्योंकि अयोगकेवली गुणस्थानवर्ती अरहंत परमात्मा प्रत्यक्ष में शरीरसहित हैं; अतः सकल परमात्मा ही हैं। 'कल' शब्द का अर्थ शरीर है / स = सहित, स + कल = सकल, सकल / = शरीर सहित। इस गुणस्थान में चारों अघाति कर्मों में से 85 कर्मों की सत्ता है। सम्यक्त्व अपेक्षा विचार - क्षायिक सम्यक्त्व ही यहाँ भी परमावगाढ सम्यक्त्वरूप कहलाता है। तेरहवें गुणस्थानवत् यहाँ भी समझ लेना चाहिए। चारित्र अपेक्षा विचार - __परमयथाख्यात चारित्र, तेरहवें गुणस्थानवत् / काल अपेक्षा विचार - पाँच ह्रस्व स्वरों (अ, इ, उ, ऋ, लु) का उच्चारण काल पर्यंत अर्थात् अंतर्मुहूर्त काल है। यहाँ काल के जघन्य, उत्कृष्ट और मध्यम भेद नहीं हैं। चौदह गुणस्थानों में से यह अयोगकेवली गुणस्थान ही एकमेव ऐसा गुणस्थान है, जो अपने अंतर्मुहूर्त काल का यथार्थ ज्ञान कराने में पूर्ण समर्थ है। अन्य गुणस्थानों के अंतर्मुहूर्त काल के लिए हमें केवलज्ञानगम्य यथायोग्य अंतर्मुहूर्त काल ऐसा कहना अनिवार्य हो गया है; क्योंकि अंतर्मुहूर्त के यथार्थ निर्णय के लिए चौदहवें गुणस्थान के समान कोई मापदण्ड हमारे पास नहीं है। गमनागमन अपेक्षा विचार - गमन - चौदहवें अयोगकेवली गुणस्थान से सिद्धदशा में ही ऊर्ध्वगमन होता है; क्योंकि अब किसी भी प्रकार की कमी नहीं रही, जिसकी पूर्ति की जाय। __ आगमन - इस चौदहवें गुणस्थान में आगमन मात्र सयोगकेवली गुणस्थान से ही होता है; अन्य किसी भी गुणस्थान से नहीं। विशेष अपेक्षा विचार - 1. अयोगकेवली गुणस्थान के उपान्त्य समय में बहत्तर प्रकृतियों

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