________________ प्रमत्तविरत गुणस्थान 161 उदयाभावी क्षय से (और सदवस्थारूप उपशम से) उत्पन्न हुए संयम में मल के उत्पन्न करने में संज्वलन का व्यापार होता है। संयम के कारणभूत सम्यग्दर्शन की अपेक्षा तो यह गुणस्थान क्षायिक, क्षायोपशमिक और औपशमिक भावनिमित्तक है। ___20. शंका - यहाँ पर सम्यग्दर्शन पद की जो अनुवृत्ति बतलाई है उससे क्या यह तात्पर्य निकलता है कि सम्यग्दर्शन के बिना भी संयम की उपलब्धि होती है ? ___समाधान - ऐसा नहीं है; क्योंकि आप्त, आगम और पदार्थों में जिस जीव के श्रद्धा उत्पन्न नहीं हुई तथा जिसका चित्त तीन मूढ़ताओं से व्याप्त है, उसके संयम की उत्पत्ति नहीं हो सकती है। 21. शंका - यहाँ पर द्रव्यसंयम का ग्रहण नहीं किया है, यह कैसे जाना जाय? समाधान - नहीं; क्योंकि भले प्रकार जानकार और श्रद्धान कर जो यमसहित है उसे संयत कहते हैं। संयत शब्द की इस प्रकार व्युत्पत्ति करने से यह जाना जाता है कि यहाँ पर द्रव्यसंयम का ग्रहण नहीं किया है। दिगम्बर मुनिराज के 28 मूलगुण अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह महाव्रत। 5 समिति ईर्या, भाषा, एषणा, आदाननिक्षेपण और प्रतिष्ठापना (उत्सर्ग समिति)। 5 इन्द्रियविजय स्पर्शनेन्द्रिय, रसनेन्द्रिय, घ्राणेन्द्रिय, चक्षुरिन्द्रिय और कर्णेन्द्रिय विजय। समता, स्तुति, वंदना, प्रतिक्रमण. आलोचना (अथवा स्वाध्याय), प्रत्याख्यान। 7 इतर गुण केशलुंचन, वस्त्रत्याग, अस्नान, भूमिशयन, अदंतधोवन, खड़े-खड़े भोजन, दिन में एक बार अल्प आहार। ५महाव्रत 6 आवश्यक