________________ अनिवृत्तिकरण गुणस्थान अनिवृत्तिकरण नाम का यह नववाँ गुणस्थान है। श्रेणी के गुणस्थानों में इसका दूसरा क्रमांक है। सिद्ध भगवान अनंत हैं / गुणों की अपेक्षा एक सिद्ध भगवान दूसरे किसी भी सिद्ध भगवान से छोटे अथवा बड़े नहीं होते / सभी सिद्ध भगवान समान ही होते हैं / तत्त्वार्थसूत्र के दसवें अध्याय का नौवाँ सूत्र भेददर्शक है - क्षेत्रकालगतिलिंगतीर्थचारित्रप्रत्येकबुद्धबोधितज्ञानावगाहनान्तर क्षेत्र, काल, गति आदि बारह अपेक्षाओं से सिद्ध जीवों में भूतकाल में होनेवाली विशेषताओं की अपेक्षा भूतनैगमनय से भेद भी बताये गये हैं। वर्तमान में धर्म परिणाम की/वीतराग परिणाम की अथवा अनंत चतुष्टय की दृष्टि से अथवा सिद्धों के आठ गुणों की मुख्यता से विचार करने पर तो सिद्धों में परस्पर तिलतुषमात्र भी अंतर या भेद नहीं है। इस अभेद अर्थात् एकरूपता का सही दृष्टि से प्रारंभ नौवें अनिवृत्तिकरण गुणस्थान के प्रथम समय से ही होता है। इसलिए इस ढाईद्वीप के किसी भी क्षेत्र में कोई भी मुनिराज भले ही वे उपशमक हों अथवा क्षपक हों, वे यदि इस अनिवृत्तिकरण गुणस्थान के प्रथम समय में प्रवेश करते हैं, तो उनका धर्मरूप परिणाम समान ही होता है। ____ संक्षेप में ऐसा भी कह सकते हैं कि अनिवृत्तिकरण गुणस्थान के समान ११वें, १२वें, १३वें और १४वें गुणस्थान पर्यंत के सर्व उत्कृष्ट साधकों में घाति-अघाति कर्मोदय से औदयिक भावों में तो परस्पर चाहे जितना भेद हो सकता है; लेकिन उनमें परस्पर वीतरागता अर्थात् धर्मपरिणाम, सुख, शांति में सबकी नियम से समानता ही रहती है। इसका अर्थ - नौवें गुणस्थान के प्रथम समयवर्ती एक मुनिराज की