________________ सूक्ष्मसाम्पराय गुणस्थान __ 211 भावी बंध से पराङ्मुख वर्तता हुआ, पूर्व बंध से छूटता हुआ, अग्नितप्त जल की दुःस्थिति समान जो दुःख उससे परिमुक्त होता है।” (देखिए तत्त्वार्थसूत्र अध्याय 5 का सूत्र क्रमांक 34) 3. सूक्ष्मलोभ परिणाम से मोहकर्म का बंध तो नहीं होता है; तथापि इसी अबुद्धिपूर्वक सूक्ष्मलोभ परिणाम से ज्ञानावरण, दर्शनावरण, अंतराय - इन तीनों घाति कर्मों तथा सातावेदनीय आदि का अंतर्मुहूर्त प्रमाण स्थिति का अल्प अनुभाग सहित बंध तो होता ही है। देखो, परिणाम और कर्म बंध की विचित्रता ! क्षपक - दसवें गुणस्थानवर्ती यही महामुनिराज ही यथायोग्य अंतर्मुहूर्त काल व्यतीत होते ही बारहवें क्षीणमोह गुणस्थान को नियम से प्राप्त करते हैं / बारहवें गुणस्थान के अन्तिम समय में ही इन तीनों घातिकर्मों का क्षय भी करनेवाले हैं; क्योंकि वे अंतर्मुहूर्त में ही सर्वज्ञ भगवान होनेवाले हैं। तथापि जबतक दसवें गुणस्थान में हैं तबतक तीनों घाति कर्मों का बंध होता ही रहता है। ___साम्पराय से बंध होने का यह अंतिम गुणस्थान है। क्षीणमोह गुणस्थान तथा इससे आगे के गुणस्थानों में कषायजन्य बंध नहीं होता है; क्योंकि बंध का कारण मोहभाव का पूर्ण रीति से नाश हो गया है। ___4. यहाँ सांपराय शब्द अंत्यदीपक है / अतः ये सूक्ष्मसापराय नामक दसवें गुणस्थानवाले सांपराय अर्थात् सूक्ष्म कषाय सहित ही हैं। ___मिथ्यात्व गुणस्थान से लेकर सूक्ष्मसांपराय गुणस्थानवर्ती सर्व जीव नियम से कषाय सहित हैं। इसे समझने के लिये प्रथम गुणस्थान से सर्व दसों गुणस्थानों को निम्नानुसार लिख सकते हैं। जैसे - बादर सांपराय मिथ्यात्व, बादर सांपराय सासादनसम्यक्त्व, बादर सांपराय मिश्र, बादर सांपराय अविरतसम्यक्त्व आदि। धवला पुस्तक 1 का अंश (पृष्ठ 188 से 189) सूक्ष्मसांपरायप्रविष्टशुद्धिसंयतों में उपशमक और क्षपक दोनों हैं / / 18 / /