Book Title: Gunsthan Vivechan Dhavla Sahit
Author(s): Yashpal Jain, Ratanchandra Bharilla
Publisher: Patashe Prakashan Samstha

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Page 217
________________ 216 गुणस्थान विवेचन उपशांतकषाय वीतराग छद्मस्थ संबंधी स्पष्टीकरण - ___उपशांतकषाय = दबी हुई कषाय / वीतराग = वर्तमान काल में सर्व प्रकार के रागादि से रहित / छद्म = ज्ञानावरण-दर्शनावरण के सद्भाव में विद्यमान अल्पज्ञान-दर्शन, स्थ = स्थित रहनेवाले / अर्थात् ज्ञानावरणदर्शनावरण के सद्भाव में स्थित रहनेवाले। ___ सर्वप्रकार की कषाय उपशांत हो जाने से वर्तमान में सर्व रागादि के अभावरूप वीतरागता प्रगट होने पर भी ज्ञानावरणादिक का क्षयोपशम होने से छद्मस्थ, अल्पज्ञ ही है। सम्यक्त्व अपेक्षा विचार - उपशांत मोही मुनिराज द्वितीयोपशम सम्यक्त्व अथवा क्षायिक सम्यक्त्व-इन दोनों सम्यक्त्वों में से किसी भी एक सम्यक्त्व के धारक होते हैं। किसी भी सम्यक्त्व के कारण इस उपशांतमोह गुणस्थान के सामान्य स्वरूप में अथवा सुखादि में कुछ अन्तर नहीं पड़ता है। चारित्र अपेक्षा विचार - यहाँ औपशमिक यथाख्यातचारित्र है। अब इस ग्यारहवें उपशांतमोह गुणस्थान के प्रथम समय में ही शेष सूक्ष्म लोभकषाय का उदय तथा सूक्ष्मलोभ परिणाम - दोनों उपशमित हो गये हैं। 99. प्रश्न : अनंतानुबंधी चारों कषायों का क्या हुआ है ? बताइए। उत्तर : यदि उपशांतमोही मुनिराज क्षायिक सम्यग्दृष्टि हैं तो उनके अनंतानुबंधी कषायों का अभाव क्षायिक सम्यक्त्व होने के पहले ही विसंयोजन द्वारा हो गया है। यदि उपशांतमोही मुनीश्वर द्वितीयोपशम सम्यक्त्व के धारक हैं तो उपश श्रेणी पर समढ़ होने के पूर्व सातिशय अप्रमत्त अवस्था में ही उनका क्षायोपशनिक सम्यक्त्व द्वितीयोपशम सम्यक्त्वरूप से परिणमित हो जाता है। उस समय अनंतानुबंधी चतुष्क की विसंयोजना या सदवस्थारूप उपशम हो जाता है। इसलिए इनके अनंतानुबंधी की सत्ता भजनीय है अर्थात् सत्ता हो भी या न भी हो।

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