________________ सूक्ष्मसाम्पराय गुणस्थान 205 अधिक है। अनादिकाल से आज तक और भविष्य में भी विश्व में अनंत जीव अनंत दुःख भोगते आ रहे हैं और भोगेंगे; यह सब मिथ्यात्व का ही प्रताप है। ___ संसार के सर्व दुःखों का मूल बीज मिथ्यात्व ही है। तीन सौ तिरेसठ विपरीत मतों के प्रचार-प्रसार का हेतु मिथ्यात्व ही है; इस अपेक्षा से दर्शनमोह महा बलवान है। मिथ्यात्व का नाश होते ही अनंत संसार सान्त/मर्यादित होता है और अपुनर्भव/मुक्ति के लिए मंगल प्रस्थान हो जाता है। ज्ञान तथा चारित्र सम्यग्दर्शन के ही अनुगामी हैं; इस अपेक्षा को सुरक्षित रखते हुए यहाँ चर्चा चल रही है। 93. प्रश्न : दर्शनमोह तथा चारित्रमोह - इन दोनों में से पहले उदयनाश किसका होता है ? उत्तर : मिथ्यात्व का नाश अनंत पुरुषार्थ से होता है और सबसे पहले उदयनाश भी मिथ्यात्व का ही होता है। सम्यक्त्व की अपेक्षा चारित्र अर्थात् आत्मस्थिरता का पुरुषार्थ अनंतगुणा अधिक है। यद्यपि चारित्रमोहनीय का उदयनाश मिथ्यात्व के उदयनाश के साथ ही प्रारम्भ हो जाता है; परन्तु पूर्ण उदयनाश और सत्त्वनाश दसवें गुणस्थान के अंतिम समय में ही होता है; यहाँ यह विवक्षा है। ___वास्तव में चौथे, पाँचवें आदि आगे के प्रत्येक गुणस्थान को प्राप्त करने का पुरुषार्थ भी उत्तरोत्तर अनंत-अनंतगुणा है। भले ही श्रद्धा चौथे गुणस्थान में क्षायिक हो जाय तो भी चारित्र में उससे भी अनंतगुणा पुरुषार्थ आवश्यक है। सम्यक्त्व में प्रतीति का पुरुषार्थ और चारित्र में स्थिरता/रमणता का पुरुषार्थ होता है। - - आचार्यश्री नेमिचन्द्र ने गोम्मटसार जीवकाण्ड गाथा 60 में सूक्ष्मसाम्पराय गुणस्थान की परिभाषा निम्नानुसार दी है - अणुलोहं वेदंतो, जीवो उवसामगो व खवगो वा। सो सुहमसांपराओ, जहरखादेणूणओ किंचि॥