________________ अनिवृत्तिकरण गुणस्थान 85. प्रश्न : सूक्ष्मकृष्टि किसे कहते हैं ? उत्तर : बादरकृष्टि से भी अनन्तवें भाग अनुभाग क्षीण स्पर्धकों को सूक्ष्मकृष्टि कहते हैं। वस्तु-व्यवस्था की अद्भुतता तथा सूक्ष्मता तो देखो ! क्षपक अनिवृत्तिकरणवाले महामुनिराज अब मात्र यथायोग्य दो अंतर्मुहूर्त समाप्त होते ही (अर्थात् दसवाँ और बारहवाँ गुणस्थान का समय व्यतीत करते ही) सर्वज्ञ भगवान/अरहंत बननेवाले हैं; तथापि उन्हें अभी भी आठों कर्मों की सत्ता मौजूद है; उनमें से एक भी कर्म का पूर्ण नाश नहीं हुआ है। मोहनीय कर्म नष्टोन्मुख है; तथापि सूक्ष्मलोभ अपने सामर्थ्य से अपने अस्तित्व की जानकारी महामुनिराज को भी मानो गौरव से दिखा रहा है। जैसे - बुझता हआ दीपक अन्त में भभक कर बुझ जाता है। अन्य ज्ञानावरणादि सातों कर्म अपनी-अपनी स्थिति अनुसार सत्ता में हैं; फिर भी उन सातों कर्मों की निर्जरा तो उत्तरोत्तर यथाक्रम तथा यथास्थान चालू है ही। ___3. भिन्न समयवर्ती जीवों के परिणाम सुनिश्चित, विसदृश तथा एकसमयवर्ती जीवों के परिणाम सुनिश्चित, सदृश ही होते हैं। 4. अनिवृत्तिकरण बादर सांपराय गुणस्थान के नाम में जो बादर शब्द आया है, वह अंत्यदीपक है। पहले गुणस्थान से लेकर इस गुणस्थान पर्यंत के सर्व जीव बादर कषाय सहित हैं। जैसे मिथ्यात्व बादर सांपराय, सासादनसम्यक्त्व बादर साम्पराय, मिश्र बादर सांपराय आदि। धवला पुस्तक 1 का अंश (पृष्ठ 184 से 187) अनिवृत्ति बादर सांपरायिक प्रविष्ट शुद्धि संयतों में उपशमक भी होते हैं और क्षपक भी होते हैं / / 16 / / __सांपराय शब्द का अर्थ कषाय है और बादर स्थूल को कहते हैं। इसलिये स्थूल कषायों को बादर सांपराय कहते हैं और अनिवृत्तिरूप बादर सांपराय को अनिवृत्तिबादरसांपराय कहते हैं। उन अनिवृत्ति बादर सांपरायरूप परिणामों में जिन संयतों की विशुद्धि प्रविष्ट हो गई है, उन्हें अनिवृत्ति-बादरसांपराय-प्रविष्ट-शुद्धिसंयत कहते हैं। ऐसे संयतों में