________________ 198 गुणस्थान विवेचन ___3. यदि उपशमक अनिवृत्तिकरण गुणस्थानवर्ती मुनिराज का आयुक्षय के कारण मरण होता है तो वे विग्रहगति के प्रथम समय में नियम से चौथे अविरत -सम्यक्त्व गुणस्थान में ही गमन करते हैं। आगमन - 1. उपशमक अनिवृत्तिकरण में आगमन नीचे के उपशमक अपूर्वकरण गुणस्थान से ही होता है। 2. उपशम श्रेणी से नीचे उतरते समय में दसवें उपशमक सूक्ष्मसांपराय गुणस्थान से ही इस नौवें गुणस्थान में आगमन होता है। 3. क्षपक अनिवृत्तिकरण गुणस्थान में आगमन मात्र क्षपक अपूर्वकरण गुणस्थान से होता है। विशेष अपेक्षा विचार - 1. अनंतगुणी विशुद्धि आदि सर्व आवश्यक कार्य इस अनिवृत्तिकरण गुणस्थान में अष्टम गुणस्थानवत ही होते हैं; उन्हें यहाँ भी लगा लेना। ____2. चारित्रमोहनीय कर्म बादरकृष्टि से सूक्ष्मकृष्टिरूप हो जाता है। इस कृष्टिकरण से सूक्ष्मलोभ कषाय के बिना शेष सर्व ग्यारह कषायें और हास्यादि सर्व नौ नोकषायों का सर्वथा उपशम या क्षय हो जाता है। 83. प्रश्न : कृष्टिकरण किसे कहते हैं ? उत्तर : क्रम से कषायों को कृष/हीन करने को कृष्टिकरण कहते हैं। अर्थात् अनुभाग/फल प्रदान करने की शक्ति का उत्तरोत्तर कम-कम होते जाना ही कृष्टिकरण है। यह अति विशिष्ट महत्त्वपूर्ण कार्य अनिवृत्तिकरण गुणस्थान में ही होता है। 84. प्रश्न : बादरकृष्टि किसे कहते हैं ? उत्तर : (अनिवृत्तिकरण नामक नौवें गुणस्थान के पूर्व पाये जानेवाले स्पर्धकों को पूर्व स्पर्धक कहते हैं। अनिवृत्तिकरण के निमित्त से अनुभाग क्षीण स्पर्धकों को अपूर्वस्पर्धक कहते हैं।) अपूर्वस्पर्धक से भी अनंतवें भाग अनुभाग क्षीण स्पर्धकों को बादरकृष्टि कहते हैं / अर्थात् संज्वलन क्रोध, मान, माया और लोभ कषायों के अनुभाग को घटाना/क्षीण करना ही बादरकृष्टि है। बादर शब्द का अर्थ है स्थूल अर्थात् बड़े-बड़े टुकड़े करना अर्थात् अनुभाग अधिक-अधिक घटाना /