Book Title: Gunsthan Vivechan Dhavla Sahit
Author(s): Yashpal Jain, Ratanchandra Bharilla
Publisher: Patashe Prakashan Samstha

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Page 185
________________ 184 गुणस्थान विवेचन 79. प्रश्न : इस आठवें उपशमक अपूर्वकरण में न मरनेरूप नियम की क्या आवश्यकता है ? उत्तर : करणानुयोग शास्त्र के प्रत्येक कथन का कारण/हेतु नहीं दे सकते; क्योंकि करणानुयोग शास्त्र अहेतुवाद आगम है, इसलिए जैसा है, वैसा सर्वज्ञ भगवंतों ने कहा है, आप भी उसको आज्ञानुसार मान लो। __ श्रेणी चढ़ने के तीव्र पुरुषार्थरूप परिणाम में मरण नहीं होता, यह कारण भी हैं। उत्कृष्टकाल - यथायोग्य अंतर्मुहूर्त ही है। यदि उपशमक अपूर्वकरण गुणस्थानवर्ती मुनिराज अधिक से अधिक काल इस गुणस्थान में रहेंगे तो मात्र अंतर्मुहूर्त ही रहेंगे। क्षपक अपूर्वकरण गुणस्थान का काल भी यथायोग्य अंतर्मुहूर्त ही है। इसका जघन्य-उत्कृष्ट काल, ऐसा भेद ही नहीं है। मध्यमकाल - उपशमक अपूर्वकरण गुणस्थान का मरण की अपेक्षा से दो, तीन, चार आदि समयों से लेकर यथायोग्य अंतर्मुहूर्त काल पर्यंत बीच के होनेवाले काल के सर्व भेद मध्यमकाल के होते हैं। गमनागमन अपेक्षा विचार - गमन - 1. उपशमक या क्षपक अपूर्वकरण गुणस्थानवर्ती मुनिराज ऊपर की ओर नियम से अनिवृत्तिकरण गुणस्थान में गमन करते हैं। 2. उपशमक अपूर्वकरण गुणस्थानवर्ती मुनिराज श्रेणी से उतरते समय नियम से अप्रमत्तसंयत गुणस्थान में गमन करते हैं। 3. यदि आठवें गुणस्थानवर्ती मुनिराज का आठवें गुणस्थान में मरण होता है तो तत्काल ही विग्रहगति के पहले समय में ही वे चौथे अविरतसम्यक्त्व गुणस्थान में ही गमन करते हैं। चढ़ते समय शमक अपूर्वकरण के प्रथम भाग में मरण न होने का नियम है; अन्य भा न चढ़ते समय भी मरण हो सकता है / उतरते समय उपशमक अनिवृत्तिकरण से नीचे अपूर्वकरण गुणस्थान में किसी भी समय मरण हो सकता है। आगमन :- 1. उपशमक अपूर्वकरण गुणस्थान में आगमन नीचे के सातवें अप्रमत्तसंयत गुणस्थान से ही होता है।

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