________________ 31 गुणस्थान परिभाषा नाम का कोई गुण आगम में नहीं कहा गया है। गुण की परिभाषा के अनुसार भी गुणस्थान गुण नहीं हो सकता; क्योंकि जो द्रव्य के संपूर्ण भागों में और उसकी सभी अवस्थाओं में रहते हैं, उन्हें गुण कहते हैं। गुणस्थान किसी भी द्रव्य के संपूर्ण भागों में और उसकी सभी अवस्थाओं में नहीं रहते हैं। इसलिए आगम-प्रमाण तथा तर्क से भी यह निर्णय हो ही जाता है कि गुणस्थान किसी भी द्रव्य का कोई गुण नहीं है। ___ इसप्रकार यह स्वयमेव सिद्ध हो गया कि गुणस्थान मात्र पर्याय ही है। पर्याय शब्द का अर्थ परिणमन या अवस्था है। ऊपर परिभाषा में अवस्था को गुणस्थान कहते हैं - ऐसा आया ही है। तात्पर्य यह निकला कि गुणस्थान संसारी जीव द्रव्य की ही पर्याय है, सिद्ध जीव द्रव्य की नहीं, तथा पुद्गल, धर्मादि पाँचों अजीव द्रव्य की भी नहीं। ____ गुणस्थान संसारी जीव द्रव्य की पर्याय निश्चित होने पर भी भेद विवक्षा से गुणस्थान जीव द्रव्य के किन-किन गुणों की पर्याय है, इसकी विशेष चर्चा क्रम से होगी ही। ___ ग्रंथाधिराज समयसार शास्त्र में तो गुण और पर्यायों के भेदों को गौण करके सामान्य जीव द्रव्य की मुख्यता से चर्चा की है और गोम्मटसार ग्रंथ में द्रव्य और गुणों को गौण करके जीव द्रव्य की विकारी-अविकारी पर्यायों की मुख्यता से वर्णन किया है। अन्य शब्दों में कहा जाय तो समयसार को त्रिकाली, एक, अखंड, भगवान आत्मा की चर्चा दृष्टि की अपेक्षा से अपेक्षित है और गोम्मटसार को कर्मसापेक्ष पर्याय की चर्चा अपेक्षित है। द्रव्य कभी पर्याय को छोड़कर अलग नहीं हो सकता और पर्याय कभी द्रव्य को छोड़कर अलग नहीं हो सकती; यह वास्तविक वस्तुव्यवस्था है। द्रव्य-पर्याय इन दोनों में से मात्र एक का स्वीकार करना तो एकांत मिथ्यात्व है। अत: द्रव्य-पर्यायमय वस्तु का यथार्थ ज्ञान करना प्रत्येक जिज्ञासु मुमुक्षु का कर्त्तव्य है। यहाँ मुख्यतया गुणस्थानरूप पर्याय की चर्चा ही इष्ट है।