________________ 63 गुणस्थान विभाजन उपशांतमोह में तथा सत्ता और उदय की अपेक्षा से भी सर्वथा अभाव बारहवें क्षीणमोह गुणस्थान में होता है। अतः ये वीतरागी मुनीश्वर पूर्ण अतीन्द्रिय सुखी हैं। (4) तेरहवें तथा चौदहवें गुणस्थानों में पूर्ण वीतरागता के साथ केवलज्ञान भी रहता है। इसलिये इन दोनों गुणस्थानों में सुख अनंतरूप से परिणमित होता है; अतः अरहंत भगवान अनंत सुखी हैं। 15. बहिरात्मा, अन्तरात्मा और परमात्मा की अपेक्षा भेद - (1) मिथ्यात्व से तीसरे मिश्र गुणस्थान पर्यंत तीनों गुणस्थानवर्ती सर्व जीव बहिरात्मा ही हैं। इन्हें दुःखी, अज्ञानी, विराधक और संसारमार्गी ही जानना चाहिए। (2) चौथे अविरतसम्यक्त्व गुणस्थान से लेकर बारहवें क्षीणमोह गुणस्थान पर्यंत नौ गुणस्थानवर्ती सर्व जीव अंतरात्मा हैं। ये सर्व सम्यग्ज्ञानी, साधक, मोक्षमार्गी और यथापदवी सुखी हैं। (3) तेरहवें-चौदहवें गुणस्थानवर्ती सयोग-अयोगकेवली जिनेंद्रों को परमात्मा कहते हैं। ये केवलज्ञानी अनंत सुखी तो हैं ही और शीघ्र ही सिद्ध परमात्मा होकर अव्याबाध अनन्त सुख को प्राप्त करनेवाले हैं। 16. अशुभोपयोगी, शुभोपयोगी, शुद्धोपयोगी की अपेक्षा - मिथ्यात्व से तीसरे मिश्र गुणस्थान पर्यंत तीनों गुणस्थानवर्ती जीव मुख्यतः अशुभोपयोगी हैं। चौथे से लेकर छठवें गुणस्थान पर्यंत के तीनों गुणस्थानवर्ती जीव मुख्यत: शुभोपयोगी और चौथे, पाँचवें गुणस्थानवर्ती गौणरूप से शुद्धोपयोगी भी हैं। ___ सातवें से बारहवें गुणस्थान पर्यंत के सर्व जीव बढ़ते हुए शुद्धोपयोगी हैं एवं तेरहवाँ तथा चौदहवाँ गुणस्थान शुद्धोपयोग का फल है। चौथे गुणस्थान से लेकर चौदहवें गुणस्थान पर्यंत के ग्यारह गुणस्थानवर्ती सर्व . जीव धर्मात्मा ही कहलाते हैं। 17. धार्मिक-अधार्मिक की अपेक्षा - मिथ्यात्व से लेकर तीसरे मिश्र गुणस्थान पर्यंत तीन गुणस्थानवर्ती सर्व जीव अधार्मिक ही हैं। चौथे अविरतसम्यक्त्व से लेकर चौदहवें अयोगकेवली गुणस्थानपर्यंत ग्यारह