________________ सासादनसम्यक्त्व गुणस्थान अनन्तानुबंधी के उदय से जैसे क्रोधादिक होते हैं वैसे क्रोधादिक सम्यक्त्व होने पर नहीं होते-ऐसा निमित्त-नैमित्तिकपना पाया जाता है / जैसे-त्रसपने कीघातकतोस्थावरप्रकृति ही है; परन्तु त्रसपना होने पर एकेन्द्रियजातिप्रकृति का भी उदय नहीं होता है, इसलिये उपचार से एकेन्द्रियप्रकृति को भी त्रसपने का घातकपना कहा जाये तो दोष नहीं है / उसीप्रकार सम्यक्त्व का घातक तो दर्शनमोह है; परन्तु सम्यक्त्व होने पर अनन्तानुबंधी कषायों का भी उदय नहीं होता, इसलिये उपचार से अनन्तानंबंधी के भी सम्यक्त्व का घातकपना कहा जाये तो दोष नहीं है। ___ यहाँ फिर प्रश्न है कि अनन्तानुबंधी सम्यक्त्व का घात नहीं करती है तो इसका उदय होने पर सम्यक्त्व से भ्रष्ट होकर सासादन गुणस्थान को कैसे प्राप्त करता है ? मोक्षमार्गप्रकाशक, पृष्ठ - 337 / समाधान - जैसे किसी मनुष्य के मनुष्यपर्याय के नाश का कारण तीव्र रोग प्रगट हुआ हो, उसको मनुष्यपर्याय का छोड़नेवाला कहते हैं। तथा मनुष्यपना दूर होने पर देवादिपर्याय हो, वह तो रोग अवस्था में नहीं हुई। यहाँ मनुष्य ही का आयु है। उसीप्रकार सम्यक्त्वी के सम्यक्त्व के नाश का कारण अनन्तानुबंधी का उदय प्रगट हुआ, उसे सम्यक्त्व का विरोधक सासादन कहा। तथा सम्यक्त्व का अभाव होने पर मिथ्यात्व होता है, वह तो सासादन में नहीं हुआ। यहाँ उपशमसम्यक्त्व का ही काल है - ऐसा जानना। इसप्रकार अनन्तानुबंधी चतुष्टय की सम्यक्त्व होने पर अवस्था होती नहीं, इसलिये सात प्रकृतियों के उपशमादिक से भी सम्यक्त्व की प्राप्ति कही जाती है।" धवला पुस्तक 1 का अंश (पृष्ठ 164) सामान्य से सासादन सम्यग्दृष्टि जीव हैं।।१०।। सम्यक्त्व की विराधना को आसादन कहते हैं। जो इस आसादन से युक्त है, उसे सासादन कहते हैं। किसी एक अनन्तानुबन्धी कषाय के उदय से जिसका सम्यग्दर्शन नष्ट हो गया है; किन्तु जो मिथ्यात्व कर्म के उदय से उत्पन्न हुए मिथ्यात्वरूप परिणामों को नहीं प्राप्त हुआ है; फिर भी मिथ्यात्व गुणस्थान के अभिमुख है, उसे सासादन कहते हैं।