________________ अविरतसम्यक्त्व गुणस्थान 111 2. औपशमिक सम्यक्त्वी के सम्यक्त्व विरोधी सातों प्रकृतियों की सत्ता बनती है और पल्य के असंख्यातवें भाग काल तक बनी रहती है एवं काल भी अंतर्मुहूर्त मात्र है, जबकि क्षायिक सम्यक्त्वी के सम्यक्त्वविरोधी सातों प्रकृति की सत्ता नहीं है और काल सादि अनंत है, अत: नित्य है। 3. क्षायिक सम्यग्दृष्टि समय-समय प्रति गुणश्रेणी निर्जरा करता है। 4. पूर्व में मनुष्य या तिर्यंचायु का बंध न होने की दशा में उसी भव में अथवा तीसरे ही भव में मोक्ष प्राप्त करता है। अब क्षायोपशमिक सम्यक्त्व की अपेक्षा असमानता को कहते हैं - 1. इस सम्यक्त्व में सम्यक्त्वमोहनीय का उदय होने से चल-मल__ अगाढ दोष होते हैं। 2. इसके नाश होने में देर नहीं लगती। 3. यह सम्यक्त्व पल्य के असंख्यातवें भाग बार छूट सकता है। 4. इसके लिए त्रिकरण परिणाम आवश्यक नहीं हैं। 5. क्षायोपशमिक सम्यक्त्व में उत्पत्तिकाल को छोडकर गणश्रेणी निर्जरा भजनीय है, इस कारण ही इस सम्यक्त्व के साथ श्रेणी चढ़ने का अपूर्व पुरुषार्थ नहीं हो सकता। जो, जितना और जैसा भेद है उसे भी स्वीकार करना चाहिए / (उपशम आदि की परिभाषाएँ प्रश्नोत्तर विभाग में हैं, वहाँ अवलोकन करें।) सम्यक्त्व का काल - औपशमिक सम्यक्त्व का जघन्य काल तथा उत्कृष्ट काल भी अंतर्मुहर्त ही है; तथापि जघन्य काल से उत्कृष्ट काल संख्यात गुणा अधिक है। अंतर्मुहूर्त काल के असंख्यात भेद हैं; इसलिए उसके छोटा अंतर्मुहूर्त, बड़ा अंतर्मुहर्त, मध्यम अंतर्मुहूर्त ऐसे अनेक भेद हैं। क्षायोशमिक सम्यक्त्व का जघन्य काल मात्र अंतर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट काल 66 सागर है। अथवा एक अंतर्मुहूर्त-कम एक 66 सागर के बाद एक अंतर्मुहूर्त के लिए मिश्र गुणस्थान में आकर पुनः क्षायोपशमिक सम्यक्त्व के साथ 66 सागर तक रह सकता है। यथायोग्य अंतर्मुहूर्त अधिक एक समय, दो समय आदि से लेकर अंतर्मुहूर्त कम 66 सागर पर्यंत बीच में होनेवाले काल के सर्व भेद क्षायोपशमिक सम्यक्त्व के मध्यमकाल के प्रकार हो सकते है।