________________ 112 गुणस्थान विवेचन 34. प्रश्न : प्रथम बार औपशमिक सम्यक्त्व के होने के बाद एक बार मिथ्यात्व में जाना अनिवार्य है क्या ? उत्तर : नहीं, प्रथम बार औपशमिक सम्यक्त्व होने पर कुछ जीव मिथ्यात्व में जा सकते हैं; किन्तु मिथ्यात्व में जाना अनिवार्य नहीं है; क्योंकि औपशमिक सम्यक्त्व का काल पूर्ण होने पर जीव क्षायोपशमिक सम्यग्दृष्टि, सम्यग्मिथ्यादृष्टि, सासादन सम्यग्दृष्टि भी हो सकते हैं। __इस विषय के विशेष स्पष्ट खुलासा के लिए धवला पुस्तक 6, पृष्ठ 242 (1,9,8,9) गाथा 12 तथा जयधवला पुस्तक 12 गाथा 103 एवं 105 को टीका के साथ देखिए। यहाँ गाथा क्रमांक 105 का अर्थ एवं टीका का अनुवाद दे रहे हैं - सम्यक्त्व के प्रथम लाभ के अनन्तर पूर्व पिछले समय में मिथ्यात्व ही होता है। अप्रथम लाभ के अनन्तर पूर्व पिछले समय में मिथ्यात्व भजनीय है।॥११-१०५।। यह गाथासम्यक्त्वको ग्रहण करनेवाले जीवके अनन्तर पूर्व पिछले समय में क्या मिथ्यात्व का उदय है अथवा नहीं है ऐसी पृच्छा होने पर उसका निर्णय करने के लिए आई है। अब इसका अर्थ कहते हैं / यथा - अनादि मिथ्यादृष्टि जीवके सम्यक्त्व का जो प्रथम लाभ होता है उसके अणंतरं पच्छदो' अर्थात् अनन्तरपूर्व पिछली अवस्था में मिथ्यात्व ही होता है; क्योंकि उसके प्रथम स्थिति का अन्तिम समय प्राप्त होने तक मिथ्यात्व के उदय को छोड़कर प्रकारान्तर सम्भव नहीं है। ‘लभस्स अपढमस्स दु' अर्थात् जो नियम से अप्रथम अर्थात् द्वितीयादि बार सम्यक्त्व का लाभ है उसके अनन्तरपूर्व पिछली अवस्था में मिथ्यात्व का उदय भजनीय है। कदाचित् मिथ्यादृष्टि होकर वेदकसम्यक्त्व या उपशमसम्यक्त्व को प्राप्त करता है और कदाचित् सम्यग्दृष्टि होकर वेदकसम्यक्त्व को प्राप्त करता है यह उक्त गाथा-सूत्र का भावार्थ है। (जयधवला पुस्तक 12, पृष्ठ 317) 35. प्रश्न : जिसने आज ही सम्यक्त्व की प्राप्ति की है और जिसने अनेक वर्षों से पहले सम्यक्त्व की प्राप्ति की है - इन दोनों जीवों की श्रद्धा की व चारित्र की शुद्धि में कुछ अंतर होगा या नहीं ?