________________ सम्यग्मिथ्यात्व (मिश्र) गुणस्थान तीसरे गुणस्थान का नाम सम्यग्मिथ्यात्व या मिश्र है। इस गुणस्थान के नाम से ही हमारे मन में एक प्रश्न उत्पन्न होता है 26. प्रश्न : जो लोग सच्चे और झूठे - दोनों प्रकार के देव, शास्त्र और गुरु को समान मानते हैं, वे ही सम्यग्मिथ्यादृष्टि हैं अथवा अन्य हैं ? ___उत्तर : जो लोग सच्चे और झूठे - देव, शास्त्र, गुरु को समान पूजनीय तथा कल्याणदायक मानते हैं; वे तो साक्षात् गृहीत मिथ्यादृष्टि ही हैं, उनका तो मिथ्यात्व गुणस्थान ही है। उन्हें तो सच्चे देव, शास्त्र, गुरु का भी निर्णय नहीं है, वे सच्चे झूठे का निर्णय करने के लिए विचार भी नहीं कर रहे हैं। उनका तीसरा गुणस्थान नहीं हो सकता / तीसरा गुणस्थान तो उन्हें होता है, जो एक बार सम्यग्दृष्टि हो चुके हैं। जिस जीव ने एक बार सम्यक्त्व प्राप्त किया हो और फिर मिथ्यादृष्टि हो गया हो, उसे सादि मिथ्यादृष्टि कहते हैं। जब अनादि मिथ्यादृष्टि जीव औपशमिक सम्यक्त्व की प्राप्ति करता है तो उस जीव के मिथ्यात्व के तीन टुकड़े होने के कारण दर्शनमोहनीय कर्म तीन प्रकार का हो जाता है - 1. मिथ्यात्व 2. सम्यग्मिथ्यात्व 3. सम्यक्प्रकृति / अत: जिसके पास सम्यग्मिथ्यात्व दर्शनमोहनीय कर्म व ! सत्ता हो और उसका उदय आ जाय तो ही उसे तीसरा गुणस्थान होता है। 27. प्रश्न : जिस जीव को सम्यग्मिथ्यात्व कर्म की सत्ता अर्थात् अस्तित्व एवं उदय न हो तो क्या उस जीव को तीसरा गुणस्थान नहीं हो सकता ? उत्तर : जिस जीव के पास सम्यग्मिथ्यात्व कर्म की सत्ता/अस्तित्व है; उस जीव को सम्यग्मिथ्यात्व गुणस्थान नियम से होता ही है -- ऐसा