________________ गुणस्यान पिनाजण हो नहीं सकता। करणानुयोग में तो यथार्थ पदार्थ बताने का मुख्य प्रयोजन है। ..... आप कर्मों के उपशमादि करना चाहें तो कैसे होंगे ? आप तो तत्त्वादि का निश्चय करने का उद्यम करें। उससे स्वयमेव ही उपशमादि सम्यक्त्व होते हैं...... / (मोक्षमार्गप्रकाशक, पृष्ठ-२७७) 8. प्रश्न : सम्यग्दर्शन के पूर्व करणलब्धि तो चाहिए ना ? आप तो उसकी बात ही नहीं करते ? उत्तर : हाँ ! करणलब्धि चाहिए; यह आपका कहना ठीक है। सम्यग्दर्शन के पूर्व क्षयोपशम, विशुद्धि, देशना, प्रायोग्य और करण - ये पाँचों लब्धियाँ अवश्य होती हैं; इनमें करणलब्धि साधकतम होती है। अर्थात् करणलब्धि प्राप्त होने पर सम्यग्दर्शन नियम से प्रगट होता ही है / ऐसा नियम अन्य चारों लब्धियों के साथ नहीं है। इस करणलब्धि के प्राप्ति का उपाय भी एक त्रिकाली निज शुद्धात्मा का आश्रय लेना ही है, अन्य नहीं। यही उपाय मोक्षमार्ग/रत्नत्रय की प्राप्ति का है। जैसे बिल्ली को कोई कैसे भी जमीन पर फेंके, वह नियम से अपने चारों पैरो पर ही खड़ी होती है; वैसे ही चारों अनुयोगों में से किसी भी अनुयोग को पढ़ो, सभी में सम्यग्दर्शन की प्राप्ति का उपाय मात्र निज भगवान आत्मा का आश्रय करना ही बताया है। - ऐसा विचार किया कि...वहाँ अपने प्रयोजनभूत मोक्षमार्ग के, देव-गुरु-धर्मादिक के, जीवादितत्त्वों के तथा निज-पर के और अपने को अहितकारी-हितकारी भावों के इत्यादि के उपदेश से सावधान होकर ऐसा विचार किया कि अहो ! मुझे तो इन बातों की खबर ही नहीं, मैं भ्रम से भूलकर प्राप्त पर्याय में ही तन्मय हुआ; परन्तु इस पर्याय की तो थोड़े ही काल की स्थिति है तथा यहाँ मुझे सर्व निमित्त मिले हैं, इसलिए मुझे इन बातों को बराबर समझना चाहिए, क्योंकि इनमें तो मेरा ही प्रयोजन भासित होता है। ऐसा विचारकर जो उपदेश सुना उसके निर्धार करने का उद्यम किया। - मोक्षमार्गप्रकाशक, अध्याय-७, पृष्ठ-२५७