________________ सासादनसम्यक्त्व गुणस्थान या सम्यग्दृष्टि। परंतु करणानुयोग श्रद्धागुण की छह पर्यायों को स्वीकार करता है। जैसे - (1) मिथ्यात्व (2) सासादनसम्यक्त्व (3) सम्यग्मिथ्यात्व (4) औपशमिक सम्यक्त्व (5) क्षायोपशमिक सम्यक्त्व और (6) क्षायिक सम्यक्त्व। इसी कारण से सासादनसम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्व गुणस्थानों की सिद्धि हो जाती है। आचार्य श्री नेमिचन्द्र ने गोम्मटसार जीवकाण्ड गाथा 19 में सासादनसम्यक्त्व गुणस्थान की परिभाषा निम्नानुसार दी है - आदिमसम्मत्तद्धा समयादो छावलि त्ति वा सेसे / अणअण्णदरूदयादो णासियसम्मो त्ति सासणक्खो सो।। प्रथमोपशम सम्यक्त्व के अंतर्मुहूर्त काल में से जब जघन्य एक समय या उत्कृष्ट छह आवली प्रमाण काल शेष रहे, उतने काल में अनंतानुबंधी क्रोध, मान, माया, लोभ में से किसी एक कषाय के उदय में आने से सम्यक्त्व की विराधना होने पर श्रद्धा की जो अव्यक्त अतत्त्वश्रद्धानरूप परिणति होती है, उसको सासन या सासादन गुणस्थान कहते हैं। श्री गुणधराचार्य और श्री यतिवृषभाचार्य के मतानुसार द्वितीयोपशम सम्यक्त्वी भी दूसरे गुणस्थान में आते हैं। यहाँ परिभाषा में जो श्रद्धा की अव्यक्त अतत्त्वश्रद्धानरूप परिणति की बात कही है, उसे दर्शनमोहजनित मिथ्यात्वरूप परिणति नहीं कह सकते; क्योंकि श्रद्धा की विपरीत परिणति अव्यक्त है। अतत्त्वश्रद्धान की परिणति व्यक्त होते ही मिथ्यात्वी हो जाता है। औपशमिक सम्यक्त्व की विराधना होने पर सासादन गुणस्थान उत्पन्न हुआ है। 23. प्रश्न : औपशमिक सम्यक्त्व की विराधना में किसी कर्म का उदय निमित्त है या नहीं ? उत्तर : अनंतानुबंधी क्रोध, मान, माया, लोभ में से किसी एक कषाय कर्म के उदय के निमित्त से औपशमिक सम्यक्त्व की विराधना हो जाती है। 24. प्रश्न : सम्यक्त्व की विराधना/नाश तो मिथ्यात्व कर्म के उदय से होता है; आप अनंतानुबंधी कषाय के उदय से औपशमिक सम्यक्त्व की विराधना होती है, ऐसा क्यों कहते हो ?