________________ गुणस्थान विवेचन अनादि से सर्व द्रव्य अथवा प्रत्येक गुण स्वभाव से शुद्ध ही हैं; ऐसा स्वीकार करना चाहिए। सर्वज्ञ भगवंतों की दिव्यध्वनि में द्रव्य और गुणों को सदा शुद्ध ही कहा गया है। काल अपेक्षा विचार - जघन्यकाल - इस गुणस्थान का जघन्य काल मात्र एक समय है। अर्थात् कोई जीव छठवें आदि गुणस्थानों में से औपशमिक सम्यक्त्व के साथ गिरकर इस सासादनसम्यक्त्व गुणस्थान में आ जाये तो वह कम से कम इस गुणस्थान में मात्र एक समय रह सकता है। तदनंतर वह नियम से मिथ्यात्व गुणस्थान में गमन करता है। उत्कृष्ट काल - यदि कोई जीव इस सासादनसम्यक्त्व गुणस्थान में अधिक से अधिक काल पर्यंत रहेगा तो मात्र छह आवली पर्यंत ही रह सकता है। तदनंतर नियम से मिथ्यात्व गुणस्थान में ही गमन करता है। अत: इसका उत्कृष्ट काल छह आवली है। मध्यम काल-दो, तीन, चार, पाँचसमय आदि से लेकर एक आवली, दो आवली, तीन, चार, पाँच आवली अधिक एक समय, दो समय से लेकर तीन, चार, पाँच और आखिर का एक समय कम छह आवली पर्यंत के सर्व भेद सासादनसम्यक्त्व के मध्यम काल के भेद हो सकते हैं। गमनागमन अपेक्षा विचार - गमन - सासादनसम्यग्दृष्टि जीव नियम से नीचे मिथ्यात्व गुणस्थान में ही गमन करता है / मिश्र, अविरतसम्यक्त्व आदि ऊपर के गुणस्थानों में सासादन सम्यग्दृष्टि का गमन नहीं होता; क्योंकि उसका मुख ही मिथ्यात्व की ओर हो गया है / इस कारण उसकी पर्यायगत पात्रता ही मात्र मिथ्यात्व गुणस्थान में ही प्रवेश करने की है। जैसे पेड़ से फल नीचे गिर रहा हो तो वह नीचे जमीन पर नियम से गिरेगा ही, बीच के अंतराल से वापिस पेड़ पर नहीं जा सकता है। वैसे सासादनसम्यक्त्वी जीव सम्यक्त्व से छूट गया है, मिथ्यात्व के अभिमुख हो गया है। अब सासादन से ही उपरिम गुणस्थानों में जाने का उसे अवसर नहीं है। अब तो मिथ्यादृष्टि होना ही अनिवार्य है। फिर