________________ गुणस्थान विवेचन से जीव को सासादनसम्यक्त्व गुणस्थान प्राप्त होता है। यहाँ मिथ्यात्व दर्शनमोहनीय कर्म का उदय न होने पर भी जीव सम्यक्त्व से रहित हो गया है, यह विषय समझना महत्वपूर्ण है। 21. प्रश्न : सासादनसम्यक्त्व गुणस्थान औपशमिक सम्यक्त्वी को ही क्यों होता है; क्षायिक या क्षायोपशमिक सम्यक्त्वी को क्यों नहीं होता? उत्तर : जिस सम्यग्दृष्टि के पास अनंतानुबंधी कषाय की सत्ता हो और उसका उदय भी हो तो उसी को दूसरा सासादन गुणस्थान होता है। क्षायिक सम्यग्दष्टि के तो अनंतानबंधी कषायोंका (विसंयोजनरूप) नाश ही हो चुका है अर्थात् उसे अनंतानुबंधी कषाय की सत्ता ही नहीं है, तो उसे अनंतानुबंधी का उदय कैसे होगा ? अतः क्षायिक सम्यग्दृष्टि को दूसरा गुणस्थान नहीं होता। क्षायोपशमिक सम्यग्दृष्टि को अनंतानुबंधी कषायों की सत्ता तो है; परंतु उनकाअप्रशस्त उपशम या विसंयोजना हुई है, अत: अनंतानुबंधी का उदय न होने से क्षायोपशमिकसम्यग्दृष्टि को भी दूसरा गुणस्थान नहीं होता। __ औपशमिक सम्यग्दृष्टि को मिथ्यात्व का अंतरकरणरूप उपशम हुआ है। इस कारण उपशम काल तक तो कदाचित् जीव औपशमिक सम्यग्दृष्टि रहता है; और उपशम काल में से एक समय या छह आवली काल शेष रहने पर कदाचित् अनंतानुबंधी की उदय/उदीरणा होने से सम्यक्त्व की विराधना हो जाने पर उसे सासादनसम्यक्त्व गुणस्थान हो जाता है। इस सासादन सम्यग्दृष्टि जीव को अनंतानुबंधी कषाय कर्म के उदय के निमित्त से अनंतानुबंधी कषाय भाव उत्पन्न होने पर उसके सम्यक्त्व की विराधना कही गई है; परन्तु वह अभी मिथ्यात्व परिणाम को प्राप्त नहीं हुआ है, अत: उसे सासादनसम्यक्त्वी कहते हैं। स + आसादन = सासादन / स = सत, आसादन = विराधना, नाश / इसप्रकार सासादन शब्द का अर्थ सम्य ..त्व का नाश करनेवाला होता है। 22. प्रश्न : सम्यक्त्व का नाश हुआ है; लेकिन मिथ्यात्व परिणाम को प्राप्त नहीं हुआ है, यह कैसे सम्भव हैं ? यह जीव बीच में कहाँ अटकता है ? उत्तर : सामान्यरूप से देखा जाए तो जीव या तो मिथ्यादृष्टि होता है