________________ गुणस्थान विवेचन भोग रहा है / यह जानकर अपने भूतकालीन भ्रम का ज्ञान होने से संसार से भय उत्पन्न होता है; भोगों की आसक्ति कम हो जाती है एवं वैराग्यभाव पुष्ट होता है। 11. नरक-निगोदादि के दुःखों की जानकारी से भी संसार, शरीर एवं भोगों से विरक्ततारूप मोक्षमार्ग प्राप्त करने का मंगल बोधपाठ मिलता है और ज्ञायक आत्मा के आश्रय की भावना उत्पन्न होती है। ___ करणानुयोग के शास्त्र में केवलज्ञानगम्य सूक्ष्म कथन होने से उसे अहेतुवाद आगम भी कहते हैं; क्योंकि इसमें प्रतिपादित प्रत्येक विषय के संबंध में हेतु देना संभव नहीं है। जैसे - गुणस्थान चौदह हैं। आप पूछोगे - गुणस्थान चौदह ही क्यों हैं ? तेरह अथवा पंद्रह क्यों नहीं हैं ? इसका उत्तर इतना ही है कि अनंत सर्वज्ञ भगवंतों की दिव्यध्वनि में चौदह गुणस्थानों का ही वर्णन आया है, अत: गुणस्थान चौदह ही हैं / आगमगर्भित युक्ति तो बता सकते हैं; परंतु जैसे द्रव्यानुयोग में बुद्धिगम्य हेतु या तर्क दे सकते हैं, वैसे करणानुयोग में हेतु या तर्क देना शक्य नहीं है। ___ जैनधर्म परीक्षा प्रधानी है। - यह कथन मात्र द्रव्यानुयोग की अपेक्षा से है। अन्य तीनों अनुयोगो में केवलीभगवान की आज्ञा की ही मुख्यता है। प्रथमानुयोग के पुराणों में वर्णित शलाका पुरुष त्रेसठ होते हैं / भरतऐरावत क्षेत्र के अवसर्पिणी के चतुर्थ तथा उत्सर्पिणी के तीसरे काल में तीर्थंकर चौबीस ही होते हैं। विदेह क्षेत्र में हमेशा भरत क्षेत्र के अवसर्पिणी के चौथे काल की आदि जैसा काल ही वर्तता है। वहाँ कम से कम बीस तीर्थंकर सदा काल विद्यमान रहते हैं। चक्रवर्ती बारह होते हैं, इत्यादि कथनों की परीक्षा नहीं हो सकती। जैसी भगवान की आज्ञा शास्त्र में लिपिबद्ध है, वैर, टी मानना अनिवार्य है। ___ करणानुयोग के ग्रन्थों के अनुसार चौदह मार्गणायें, चौदह जीवसमास, मेरू पर्वत, असंख्यात द्वीप एवं समुद्र, नरक-स्वर्ग संबंधी वर्णित दु:ख तथा सुख का स्वरूप - इन सबका आज्ञानुसार ही श्रद्धान करना अनिवार्य है। चरणानुयोग के शास्त्रों के अनुसार आलू, प्याज, शकरकंद, मूली,