________________ 42 गुणस्थान विवेचन 62. प्रश्न : कृष्टि (अनुकृष्टि) किसे कहते हैं ? / उत्तर : कर्मों के अनुभाग का क्रम से हीन-हीन होने को कृष्टि अथवा अनुकृष्टि कहते हैं / अर्थात् अनुभाग का कृष होना-घटना सो कृष्टि है। यह कृष्टि अनिवृत्तिकरण गुणस्थान के परिणामों के निमित्त से होती है। 63. प्रश्न : बादरकृष्टि किसे कहते हैं ? उत्तर : अपूर्वस्पर्धक से भी अनंतगुना अनुभाग क्षीण स्पर्धकों को बादरकृष्टि कहते हैं / अर्थात् संज्वलन क्रोध, मान, माया, लोभ का अनुभाग घटना - स्थूल खंड होना, सो बादरकृष्टि है। 64. प्रश्न : सूक्ष्मकृष्टि किसे कहते हैं ? उत्तर : बादरकृष्टि से भी अनंतगुना अनुभाग क्षीण स्पर्धकों को सूक्ष्मकृष्टि कहते हैं। 65. प्रश्न : अनुकृष्टिरचना किसे कहते हैं ? उत्तर : ऊपर-नीचे अर्थात् आगे-पीछे के परिणामों में अनुकर्षण अर्थात् क्रम से हीन-हीन होने को दिखानेवाली रचना विशेष को अनुकृष्टि रचना कहते हैं। 66. प्रश्न : मार्गणा किसे कहते हैं और उसके कितने भेद हैं ? उत्तर : किन्हीं विशिष्ट पर्यायों अर्थात् भावों के आधार पर जीवों के अन्वेषण अर्थात् खोज को मार्गणा कहते हैं। उसके चौदह भेद हैं - गति, इन्द्रिय, काय, योग, वेद, कषाय, ज्ञान, संयम, दर्शन, लेश्या, भव्यत्व, सम्यक्त्व, संज्ञी और आहार / * मार्गणा प्रकरण में विवक्षित भाव का सद्भाव-असद्भाव दोनों अपेक्षित होते हैं। 67. प्रश्न : सम्यक्त्वमार्गणा किसे कहते हैं ? उसके कितने भेद हैं ? उत्तर : सम्यग्दर्शन/श्रद्धागुण की मुख्यता से जीवों के अन्वेषण को सम्यक्त्व-मार्गणा कहते हैं। उसके छह भेद हैं। मिथ्यात्व, सासादन, मिश्र, औपशमिकसम्यक्त्व, क्षायोपशमिकसम्यक्त्व और क्षायिकसम्यक्त्व / (प्रथम तीन भेदों का स्वरूप तत्संबंधी गुणस्थानरूप ही है; अत: गुणस्थान अध्याय में देखिये।) “सम्यक्त्व के तो भेद तीन ही हैं। तथा सम्यक्त्व के अभावरूप मिथ्यात्व है। दोनों का मिश्रभाव सो मिश्र है। सम्यक्त्व का घातक भाव