________________ महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर सो सासादन है। इसप्रकार सम्यक्त्वमार्गणा से जीव का विचार करने पर छह भेद कहे हैं।” - मोक्षमार्गप्रकाशक, पृष्ठ : 337 68. प्रश्न : औपशमिकसम्यक्त्व किसे कहते हैं ? उत्तर : निज शुद्धात्म सन्मुख पुरुषार्थी जीव के पांच, छह या सात प्रकृतियों (दर्शनमोहनीय तीन, अनंतानुबंधी चतुष्क) के उपशम के समय में अर्थात् निमित्त से होनेवाले श्रद्धागुण के सम्यक् परिणमन को औपशमिक सम्यक्त्व कहते हैं। * अनादि मिथ्यादृष्टि के 5 प्रकृतियों का और सादि मिथ्यादृष्टि के 7, 6 या 5 प्रकृतियों का उपशम होता है। * अनादि मिथ्यादृष्टि जीव को सर्वप्रथम औपशमिक सम्यग्दर्शन ही प्रगट होता है। 69. प्रश्न : क्षायोपशमिकसम्यक्त्व किसे कहते हैं ? उत्तर : निज शुद्धात्मसन्मुख पुरुषार्थी जीव के पूर्वोक्त सात प्रकृतियों के क्षयोपशम के समय में अर्थात् निमित्त से होनेवाले श्रद्धागुण के सम्यक् परिणमन को क्षायोपशमिकसम्यक्त्व कहते हैं। * क्षयोपशम- अनंतानुबंधी 4 व मिथ्यात्व तथा सम्यग्मिथ्यात्व इन 6 सर्वघाति प्रकृतियों के उदयाभावी क्षय और सदवस्थारूप उपशम तथा देशघाति सम्यक् प्रकृति दर्शनमोहनीय का उदय।। 70. प्रश्न : क्षायिकसम्यक्त्व किसे कहते हैं ? उत्तर : निज शुद्धात्मसन्मुख पुरुषार्थी जीव के पूर्वोक्त सात प्रकृतियों के सर्वथा क्षय के समय में होनेवाले तथा भविष्य में अनन्त कालपर्यन्त रहनेवाले श्रद्धागुण के सम्यक् परिणमन को क्षायिकसम्यक्त्व कहते हैं। क्षायिक सम्यग्दर्शन हमेशा क्षायोपशमिक सम्यक्त्वपूर्वक ही होता है और भविष्य काल में अनन्त कालपर्यन्त क्षायिकरूप ही रहता है। 71. प्रश्न : औपशमिकसम्यक्त्व के कितने भेद हैं ? उत्तर : दो भेद हैं, प्रथमोपशमसम्यक्त्व और द्वितीयोपशमसम्यक्त्व / 72. प्रश्न : प्रथमोपशमसम्यक्त्व किसे कहते हैं ? उत्तर : 'प्रथम' शब्द का अर्थ पहली बार नहीं। अनादि अथवा सादि मिथ्यादृष्टि जीव को जब भी औपशमिक सम्यग्दर्शन प्रगट होता है, उसको