________________ 36 गुणस्थान विवेचन 31. प्रश्न : श्रेणी के कितने भेद हैं ? उत्तर : श्रेणी के दो भेद हैं। उपशमश्रेणी व क्षपकश्रेणी। 32. प्रश्न : श्रेणी चढ़ने का क्या अर्थ है ? उत्तर : सातवें गुणस्थान से आगे मुनिराज क्रम से शुद्ध भावों को अर्थात् वीतरागता को बढ़ाते ही जाते हैं; इसी को श्रेणी चढ़ना कहते हैं। * सातवें गुणस्थान से आगे वृद्धिंगत वीतराग परिणामों की दो श्रेणियाँ हैं - 1. उपशमश्रेणी व 2. क्षपकश्रेणी। प्रत्येक श्रेणी के चार-चार गुणस्थान होते हैं। 33. प्रश्न : उपशमश्रेणी किसे कहते हैं ? उसके कौन-कौन से गुणस्थान हैं ? उत्तर : जिसमें चारित्र मोहनीय की उपशामना के साथ वीतरागता बढ़ती जाती है, उसे उपशमश्रेणी कहते हैं। आठवाँ, नौवाँ, दसवाँ और ग्यारहवाँ ये चार गुणस्थान उपशमश्रेणी के हैं। 34. प्रश्न : क्षपकश्रेणी किसे कहते हैं ? उसके कौन-कौन से गुणस्थान हैं ? उत्तर : जिसमें चारित्रमोहनीय की 21 प्रकृतियों से क्षय के साथ वीतरागता बढ़ती जाती है, उसे क्षपकश्रेणी कहते हैं। आठवाँ, नौवाँ, दसवाँ और बारहवाँ ये चार गुणस्थान क्षपकश्रेणी के हैं। 35. प्रश्न : मोहनीय कर्म किसे कहते हैं ? उसके कितने भेद हैं ? उत्तर : जीव के मोह-राग-द्वेष आदि विकारी परिणामों के होने में जो कर्म निमित्त होता है, उसे मोहनीय कर्म कहते हैं। उसके दो भेद हैं - दर्शनमोहनीय कर्म और चारित्रमोहनीय कर्म / 36. प्रश्न : दर्शनमोहनीय कर्म के कितने भेद हैं ? उत्तर : बंध की अपेक्षा दर्शनमोहनीय कर्म एक ही प्रकार का है; किन्तु सत्त्व अर्थात् सत्ता और उदय की अपेक्षा से उसके तीन भेद हैं - (1) मिथ्यात्व (2) सम्यग्मिथ्यात्व (3) सम्यक्प्रकृति। जैसे - चक्की में दले हुये कोदों के चावल, कण और भूसी, इसप्रकार तीन भेद होते हैं; उसीप्रकार प्रथमोपशम सम्यक्त्वरूपी चक्की में दले गये दर्शनमोहनीय कर्म के तीन भेद होते हैं। 1.