Book Title: Gommatsara Jivakand
Author(s): Khubchandra Jain
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal

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Page 19
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir रायचन्द्रजैनशास्त्रमालाद्वारा प्रकाशित ग्रन्थोंकी सूची। १ पुरुषार्थसियपाय भाषाटीका यह श्रीअमृतचन्द्रखामी विरचित प्रसिद्ध शास्त्र है इसमें आचारसंबन्धी बडे २ गूढ रहस्य हैं विशेष कर हिंसाका स्वरूप बहुत खूबीकेसाथ दरसाया गया है, यह एक वार छपकर विकगयाथा इसकारण फिरसे संशोधन कराके दूसरीवार छपाया गया है । न्यों. १ रु. २ पञ्चास्तिकाय संस्कृ.भा. टी. यह श्रीकुन्दकुन्दाचार्यकृत मूल और श्रीअमृतचन्द्रसूरीकृत संस्कृतटीकासहित पहले छपा था। अबकी बार इसकी दूसरी आवृत्तिमें एक संस्कृतटीका तात्पर्यवृत्ति नामकी जो कि श्रीजयसेनाचार्यने बनाई है अर्थकी सरलताकेलिये लगादी गई है तथा पहली संस्कृतटीकाके सूक्ष्म अक्षरोंको मोटा करादिया है और गाथासूची व विषयसूची भी देखनेकी सुगमताके लिये लगादी हैं । इसमें जीव, अजीव, धर्म, अधर्म और आकाश इन पांच द्रव्योंका तो उत्तम रीतिसे वर्णन है तथा कालद्रव्यका भी संक्षपसे वर्णन किया गया है। इसकी भाषा टीका स्वर्गीय पांडे हेमराजजीकी भाषाटीकाके अनुसार नवीन सरल भाषाटीकामें परिवर्तन कीगई है। इसपर भी न्यों. २ रु. ३ ज्ञानार्णव भा. टी. इसके कर्ता श्रीशुभचन्द्रखामीने ध्यानका वर्णन बहुत ही उत्तमतासे किया है । प्रकरणवश ब्रह्मचर्यव्रतका वर्णन भी बहुत दिखलाया है यह एकवार छपकर विकगया था अब द्वितीयवार संशोधन कराके छपाया गया है । न्यों. ४ रु. ४ सप्तभङ्गीतरंगिणी भा. टी. यह न्यायका अपूर्व ग्रन्थ है इसमें ग्रंथकर्ता श्रीविमलदासजीने स्यादस्ति, स्थानास्ति आदि सप्तभङ्गी नयका विवेचन नव्यन्यायकी रीतिसे किया है। स्याद्वादमत क्या है यह जाननेकेलिये यह ग्रंथ अवश्य पढना चाहिये । इसकी पहली आवृत्तिमें की एकभी प्रति नहीं रही अब दूसरी आवृत्ति शीघ्र छपकर प्रकाशित होगी । न्यों. १ रु. ५ बृहद्रव्यसंग्रह संस्कृत भा. टी. श्रीनेमिचन्द्रखामीकृत मूल और श्रीब्रह्मदेवजीकृत संस्कृतटीका तथा उसपर उत्तम बनाई गई भाषाटीका सहित है इसमें छह द्रव्योंका स्वरूप अतिस्पष्टरीतिसे दिखाया गया है । न्यों. २ रु. ६ द्रव्यानुयोगतर्कणा इस ग्रंथमें शास्त्रकार श्रीमद्भोजसागरजीने सुगमतासे मन्दबुद्धिजीवोंको द्रव्यज्ञान होनेकेलिये 'अथ, "गुणपर्ययवद्व्यम्" इस महाशास्त्र तत्त्वार्थसूत्रके अनुकूल द्रव्य-गुण तथा अन्य पदार्थोंका भी विशेष वर्णन किया है और प्रसंगवश 'स्यादस्ति' आदि सप्तभङ्गोंका और दिगंबराचार्यवयं श्रीदेवसेनस्वामीविरचित नयचक्रके आधारसे नय, उपनय तथा मूलनयोंका भी विस्तारसे वर्णन किया है। न्यों. २ रु. ७ सभाष्यतत्त्वार्थाधिगमसूत्र इसका दूसरा नाम तत्त्वार्थाधिगम मोक्षशास्त्र भी है जैनियोंका यह परममान्य और मुख्य ग्रन्थ है इसमें जैनधर्मके संपूर्णसिद्धान्त आचार्यवर्य श्री उमास्वाति ( मी) जीने बडे लाघवसे संग्रह किये हैं । ऐसा कोई भी जैनसिद्धान्त नहीं है जो इसके सूत्रोंमें गर्भित न हो। सिद्धान्तसागरको एक अत्यन्त छोटेसे तत्वार्थरूपी घटमें भरदेना यह कार्य अनुपमसामर्थ्यवाले इसके रचयिताका ही था । तत्त्वार्थके छोटे २ सूत्रोंके अर्थगांभीर्यको देखकर विद्वानोंको विस्मित होना पडता है। न्यों. २ रु. ८ स्याद्वादमअरी संस्कृत भा. टी. इसमें छहों मतोंका विवेचनकरके टीका कर्ता विद्वद्वर्य श्रीमल्लिषेणसूरीजीने स्याद्वादको पूर्णरूपसे सिद्ध किया है । न्यों. ४ रु. ९ गोम्मटसार ( कर्मकाण्ड ) संस्कृतछाया और संक्षिप्त भाषाटीका सहित । यह महान् ग्रन्थ श्रीने मिचन्द्राचार्यसिद्धान्तचक्रवर्तीका बनाया हुआ है, इसमें जैनतत्त्वोंका स्वरूप कहते हुए जीव तथा कर्मका स्वरूप इतना विस्तारसे है कि वचनद्वारा प्रशंसा नहीं होसकती देखनेसेही मालूम होसकता है For Private And Personal

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