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धर्मशास्त्र का इतिहास
६. बौधायनधर्मसूत्र "
बौधायन कृष्ण यजुर्वेद के आचार्य थे। बौधायनघमंसूत्र ग्रन्थ पूर्ण रूप से अभा नहीं प्राप्त हो सका है। आपस्तम्ब तथा हिरण्यकेशी की भाँति यह पूर्णरूपेण सुरक्षित नहीं रह सका है। डॉ० बर्नेल ने बौधायन के सूत्रों को छः प्रकरणों - श्रौतसूत्रों को १९ प्रश्नों में, कर्मान्तसूत्र को २० अध्यायों में, द्वैघसूत्र को चार प्रश्नों में गृह्यसूत्र को चार प्रश्नों में, धर्मसूत्र को चार प्रश्नों में एवं शुल्वसूत्र को तीन अध्यायों में रखा है। इसी प्रकार डा० आर० शामशास्त्री, डा० कैलेण्ड आदि ने अपने अपने ढंग से इस धर्मसूत्र को गठित किया है। बौधायनगृह्यसूत्र ने स्वयं Start a को उद्धृत किया है। बौधायनधर्मसूत्र ने बौधायनगृह्यसूत्र की चर्चा की । बौघा० गृह्य० (३.९.६ ) में हमें पदकार आत्रेय, वृत्तिकार कौण्डिन्य, प्रवचनकार कण्व बोधायन तथा सूत्रकार आपस्तम्ब के नाम मिलते हैं। "
घानधर्मसूत्र में (२.५.२७, ऋषितर्पण) कण्व बोधायन, आपस्तम्ब सूत्रकार तथा सत्याषाढ हिरण्यकेशी क्रमशः आते हैं । उपर्युक्त बातों से स्पष्ट होता है कि जब बौधायनधर्मसूत्र लिखा गया तब कण्व बोधायन एक प्राचीन ऋषि माने जा चुके थे, और वे किसी भी प्रकार से गृह्यसूत्र एवं धर्मसूत्र के लेखक नहीं माने जा सकते। हो सकता है कि बौधायन कण्व बोधायन के वंशज हों । गोविन्दस्वामी ने भी बौधायन को काण्वायन कहा है। धर्मसूत्र में कई बार . बौधायन स्वयं एक प्रमाण माने गये हैं। स्पष्ट है, धर्मसूत्रकार बौधायन ने अपने पूर्वज को, जिनका नाम कण्व बोधान था, कई बार उद्धृत किया है। बौधायनधर्मसूत्र की विषयसूची निम्न है ।
प्रश्न १ – (१) धर्म के उपादान, शिष्ट कौन है ? परिषद्, उत्तर एवं दक्षिण भारत के विभिन्न आचारव्यवहार, शिष्टों एवं मिश्रित जातियों के स्थान, मिश्रित जातियों में जाने के कारण प्रायश्चित्त; (२) ४८, २४ या १२ वर्षों का छात्रत्व, उपनयन एवं मेखला का काल, प्रत्येक जाति के लिए चर्म, दण्ड, ब्रह्मचारी के कर्तव्य, ब्रह्मचर्यं की प्रशंसा; (३) अध्ययन एवं उचिताचरण की परिसमाप्ति के उपरान्त अविवाहित स्नातक के कर्त्तव्य; (४) स्नातक के विषय में घड़े को ले जाने के बारे में आदेश; (५) शारीरिक एवं मानसिक अशौच, कतिपय पदार्थों का निर्मलीकरण या पवित्रीकरण, जन्म-मरण पर अपवित्रता ( अशौच ), सपिण्ड एवं सकुल्य का अर्थ, वसीयत के नियम, शव एवं रजस्वला स्त्री को छूने पर तथा कुत्ते के काटने पर पवित्रीकरण, कौन-से मांस या भोजन निषिद्ध हैं और कौन-से नहीं; ( ६ ) यज्ञ के लिए पवित्रीकरण, परिधान, भूमि, घास, ईंधन, बरतन तथा यज्ञ के अन्य पदार्थों का पवित्रीकरण; (७) यज्ञ - महत्ता के विषय में नियम, यज्ञ-पात्र, पुरोहित, याज्ञिक तथा उसकी स्त्री, घी, पक्वान्न दान, अपराधी, सोम एवं अग्नि के विषय में नियम; (८) चारों वर्ण और उपजातियाँ (९) मिश्रित जातियाँ (१०) राजा के कर्तव्य, पंच महापातक एवं उनके लिए दण्ड- विधान, पक्षियों को मारने पर दण्ड, साक्षी; (११) अष्ट विवाह, छुट्टियाँ । प्रश्न २ - ( १ ) ब्रह्महत्या एवं अन्य पापों के लिए प्रायश्चित्त, ब्रह्मचर्य समाप्ति
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६७. इस धर्मसूत्र का सम्पावन कई बार हुआ है--डा० हुल्ला ने लिपजिग में सन् १८८४ में इसे प्रकाशित किया। आनन्दाम स्मृति-संग्रह, मंसूर संस्करण सन् १९०७ में छपे, जिन पर गोविन्द स्वामी की टीका है। इसका अंग्रेजी अनुवाद (भूमिका के साथ) सेक्रेड बुक आफ दि ईस्ट, जिल्द १४ में है ।
६८. अयं दक्षिणतः प्राचीनावीतिने वैशम्पायनाय फलिङ्गवे तित्तिरये उखायोख्यायात्रये आत्रेयाय पकाराय कोडन्याय वृत्तिकाराय कण्वाय बोबायनाय प्रवचनकारायापस्तम्बाय सूत्रकाराय सत्याषाढाय हिरण्यकेशाय वाजसनेयाय याज्ञवल्क्याय भरद्वाजायाग्निवेश्यायाचार्येभ्य ऊर्ध्वरेतोभ्यो वानप्रस्थेभ्यो वंशस्येभ्य एकपत्नीभ्यः कल्पयामीति ।
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