Book Title: Dashvaikalik Ek Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
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________________ दशवैकालिक : एक समीक्षात्मक अध्ययन प्राचीन काल में 'आमगंध' (आचारांग 1 / 2 / 5) का अध्ययन कर मुनि पिण्डकल्पी ( भिक्षाग्नही ) होते थे। फिर वे दशवकालिक की 'पिण्डषणा' के अध्ययन के पश्चात् पिण्डकल्पी होने लगे। यदि आचारांग चूला की रचना पहले हो गई होती तो दशवकालिक को यह स्थान प्राप्त नहीं होता। इससे भी यह प्रमाणित होता है कि आचारांग चूला की रचना दशवकालिक के बाद हुई है। आगम के वर्गीकरण में दशवैकालिक का स्थान : आगमों के मुख्य वर्ग दो हैं—अंग प्रविष्ट और अंग-बाह्य / ' बारह आगम अंगप्रविष्ट कहलाते हैं—आचार, सूत्रकृत, स्थान, समवाय, विवाह-प्रज्ञप्ति, ज्ञाताधर्मकथा, उपासक-दशा, अन्तकृत्-दशा, अनुत्तरोपपातिक-दशा, प्रश्नव्याकरण, विपाकश्रुत और दृष्टिवाद / 2 अंग-बाह्य के दो प्रकार हैं—आवश्यक और आवश्यक-व्यतिरिक्त। आवश्यकव्यतिरिक्त के दो प्रकार हैं--कालिक और उत्कालिक / 4 उत्कालिक के अन्तर्गत अनेक आगम हैं। उनमें पहला नाम दशवकालिक का है।५ दशवकालिक आगम-पुरुष की रचना है, इसलिए यह आगम है। गणधर-रचित आगम ही अंग-प्रविष्ट होते हैं और यह स्थविर-रचित है इसलिए अंग-बाह्य है। कालिक-आगम दिन और रात के प्रथम और १-नंदी, सूत्र 67 : अहवा तं समासओ दुविहं पन्नत्तं, तंजहा—अंगपविटुं अंगबाहिरं च / २-वही, सूत्र 74 : से किं तं अंगपविटुं ? अंगपविटुं दुवालसविहं पष्णतं, तंजहा–आयारो 1, सूयगडो 2, ठाणं 3, समवाओ 4, विवाहपन्नत्ती 5, नायाधम्मकहाओ 6, उवासगदसाओ 7, अंतगडदसाओ 8, अगुत्तरोववाइयवसाओ 9, पण्हावागर णाई 10, विवागसुयं 11, दिट्ठिवाओ 12 / ३-वही, सूत्र 68: से किं तं अंगबाहिरं ? अंगबाहिरं दुविहं पण्णत्तं, तंजहा—आवस्सयं च, आवस्सयवइरित्तं च / ४-वही, सूत्र 70 : से किं तं आवस्सयवइरित्तं ? आवस्सयवइरित्तं दुविहं पण्णतं, तंजहा–कालियं उक्कालियं च / ५-वही, सूत्र 71: से किं तं उक्कालियं ? उक्का लियं अरोगविहं पण्णत्तं, तंजहा–दसवेयालियं...।