Book Title: Dashvaikalik Ek Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
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________________ 112 दशवकालिक : एक समीक्षात्मक अध्ययन इनके अवान्तर प्रकारों का भी संक्षिप्त उल्लेख मिलता है : १-पृथ्वी-भित्ति, शिला, लेष्टु / ' २-अप-ओस, हिम, महिका, करक (ओला), हरतनुक, शुद्ध-उदक / 2 ३-तेजस-अंगार, मुरमुर, अर्चि, ज्वाला, अलात्, शुद्ध-अग्नि, उल्का / 3 ४–वायु-पंखे की हवा, पत्र की हवा, शाखा की हवा, मोरपिच्छी की हवा, ___ वस्त्र की हवा, हाथ की हवा, मुँह की हवा। ५-वनस्पति—अग्नबीज, पर्वबीज, स्कन्धबीज, बीजरुह, सम्मूच्छिम, तृण-लता।" ६-त्रस—अण्डज, पोतज, जरायुज, रसज, संस्वेदज, सम्मूच्छिम, उद्भिज्ज, औपपातिक / प्रथम पाँच निकाय के जीव स्थावर होते हैं। उनका ज्ञान सर्वाधिक निम्न कोटि का होता है। अतः वे इच्छापूर्वक आ-जा नहीं सकते। उन्हें केवल एक स्पर्शन इन्द्रिय का ज्ञान प्राप्त होता है। अतः वे सब एकेन्द्रिय होते हैं / ज्ञान के विकासक्रम की दृष्टि से जीवों का विभाजन इस प्रकार होता है : १-एकेन्द्रिय, २-द्वीन्द्रिय, ३–त्रीन्द्रिय, ४-चतुरिन्द्रिय और ५–पञ्चेन्द्रिय-असंज्ञी पञ्चेन्द्रिय-तिर्यञ्च व सम्मूञ्छिम-मनुष्य, वाणव्यन्तर देव, भवनवासी देव, ज्योतिष्क देव और वैमानिक देव (कल्पोपपन्न, कल्पातीत, वेयक और अनुत्तर विमान के देव ) / द्वीन्द्रिय से लेकर पञ्चेन्द्रिय तक के सभी जीव त्रस हैं / जिन प्राणियों में सामने १-दशवैकालिक, 4 // सू० 18 / २-वही, ४ासू० 19 / ३-वही, ४ासू० 20 / ४-वही, ४।सू० 21 / ५-वही, ४।सू० 8 / ६-वही, ४।सू० 9 / ७-इनमें उत्तरोत्तर ज्ञान विकसित होता है। देखो वशवकालिक ( भा० 2), पृष्ठ 135, पाद-टिप्पण 4 /