Book Title: Dashvaikalik Ek Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
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________________ 3. महाव्रत : संक्षिप्त व्याख्या 116 वनस्पति की दश अवस्थाएँ होती हैं—(१) मूल, (2) कन्द, (3) स्कन्ध, (4) त्वचा, (5) शाखा, (6) प्रवाल, (7) पत्र, (8) पुष्प, (6) फल और (10) बीज / शिष्य ने पूछा- “गुरुदेव ! बीज में जो जीव था, उसके व्युत्क्रान्त होने पर क्या दूसरा जीव वहाँ उत्पन्न होता है या वही जीव ?" आचार्य ने कहा-'बीज दो प्रकार के हैं-योनिभूत और अयोनिभूत। योनिभूत बीज वह होता है जिसकी योनि नष्ट न हुई हो। जिस प्रकार 55 वर्ष की स्त्री अयोनिभूत होती है—वह गर्भ को धारण नहीं कर सकती, उसी प्रकार ये बीज भी कालान्तर में अबीज हो जाते हैं। जो अयोनिभूत है वह नियमतः निर्जीव होता है। योनिभूत सजीव और निर्जीव—दोनों प्रकार का होता है। उस योनिभूत बीज में व्युत्क्रान्त होने वाला जीव भी उत्पन्न हो सकता है और दूसरा जीव भी। फिर बार-बार वहाँ दूसरे जीव भी उत्पन्न हो सकते हैं / कहा है-उत्पद्यमान सभी किसलय अनन्तजीवी होते हैं। बढ़ता हुआ वही वनस्पति अनन्तजीवी या परित्तजीवी भी हो सकता है। बीज शरीरी जीव जहाँ-जहाँ अपनी काया को बढ़ाता है वहाँ-वहाँ पत्र, फूल, स्कन्ध, शाखा आदि को भी उत्पन्न करता है / "1 वर्षा से उष्णयोनिक वनस्पति म्लान हो जाती है। विभिन्न प्रकरणों में जलज व स्थलज वनस्पति के अनेक नाम मिलते हैं : जलज स्थलज .. १-हड (2 / 6) आदि-आदि। १-मूला। २–आर्द्रक। ३-इक्षु। ४–कन्द-मूल (3 / 7) आदि-आदि / वनस्पति-जगत् और अहिंसक निर्देश : __मुनि वनस्पति पर न चले, न खड़ा रहे, न बैठे और न सोए। वनस्पति को १-जिनदास चूर्णि, पृष्ठ 138-139 / २-वही, पृष्ठ 262 : उहजोणिओ वा वणप्फइ वा कुहेज्जा। ३-दशवकालिक, ४।सू०२२, 5 // 1 // 3,26; 8 / 11 /