Book Title: Dashvaikalik Ek Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
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________________ 3. महाव्रत : संक्षिप्त व्याख्या है।' टीकाकार ने इसके बारे में कोई चर्चा नहीं की है। ओघनियुक्ति आदि ग्रन्थों में अचित्त वस्तु के फिर से सचित्त होने का वर्णन मिलता है। जल की योनि अचित्त भी होती है / 2 सूत्रकृतांग (2 // 3 // 56 ) के अनुसार जल के जीव दो प्रकार के होते हैं-वातयोनिक और उदक-योनिक / उदक-योनिक जल के जीव उदक में ही पैदा होते हैं। वे सचित्त उदक में ही पैदा हों, अचित्त में नहीं हों, ऐसे विभाग का आधार नहीं मिलता क्योंकि वह अचित्त-योनिक भी है। इसलिए यह सूक्ष्म-दृष्टि से विमर्शनीय है। प्राणीविज्ञान की दृष्टि से यह बहुत ही महत्त्व का है। तेजस-जगत् और अहिंसक निर्देश : तेजस काय के जीवों के भेद इस प्रकार हैं : अग्नि- स्पर्श-ग्राह्य अग्नि / अंगार- ज्वाला रहित कोयला आदि / मुर्मुर- कंडे, करसी, तुष, चोकर, भूसी आदि की आग। . अर्चि- अग्नि से विच्छिन्न ज्वाला। अलात- अधजली लकड़ी। शुद्ध-अग्नि-इन्धन रहित अग्नि / - उल्का-- गगनाग्नि / मुनि इनको प्रदीप्त न करे, इनका घर्षण न करे, इनको प्रज्वलित न करे, इनको न बुझाये / 3 प्रकाश और तापने के लिए अग्नि न जलाए। अग्नि की किसी प्रकार से हिंसा न करे।" १-जिनदास चूर्णि, पृष्ठ 114 : तत्तं पाणीयं तं पुणो सीतलीभूतमनिव्वुडं भण्णइ, तं च न गिण्हे, रत्तिं पज्जुसियं सचित्ती भवइ, हेमंतवासासु पुवण्हे कयं अवरण्हे सचित्ती भवति, एवं सचित्तं जो मुंजइ सो तत्तानिव्वुडभोई भवइ / . २-स्थानांग, 3 / 1 / 140 : तिविहा जोणी पण्णत्ता तंजहा–सचित्ता अचित्ता मीसिया। एवं एगिदियाणं विगलिंबियाणं संमुच्छिमपंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं समुच्छिममणुस्साण य। ३-दशवकालिक, ४।सू०२०; 88 / ४-वही, 6 / 34 / ५-वही, 6 / 32-35 / ... .............