Book Title: Dashvaikalik Ek Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
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________________ 118 दशवैकालिक : एक समीक्षात्मक अध्ययन वायु-जगत् और अहिंसक निर्देश : मुनि चामर आदि से अपने पर या दूसरों पर हवा न करे। मुंह से फूंक न दे / / वायुकाय की किसी भी प्रकार से हिंसा न करे / वनस्पति : आयुर्वेद के ग्रन्थों में वनस्पति का एक विशेष अर्थ है। सुश्रुत संहिता में स्थावर औषधि के चार प्रकार बतलाए गए हैं—(१) वनस्पति, (2) वृक्ष, (3) वीरुधं और (4) औषधि। इनमें से जिनके पुष्प न हों किन्तु फल आते हों उन्हें वनस्पति ; जिनके पुष्प और फल दोनों आते हों उन्हें वृक्ष , जो फैलने वाली या गुल्म के स्वरूप की हों उन्हें वीरुध तथा जो फलों के पकने तक ही जीवित या विद्यमान रहती हों उन्हें ओषधि कहते हैं / 3 . आगम-साहित्य में वनस्पति शब्द वृक्ष गुच्छ, गुल्म आदि सभी प्रकार की हरियाली का वाचक है। सातवें अध्ययन में वनस्पति के क्रमिक विकास का निरूपण मिलता है। उसका उत्पादन सात अवस्थाओं में पूरा होता है / वे ये हैं : २-बहु संभूत। ३-स्थिर। ४-उत्सृत / ५-गर्भित / ६-प्रसूत / ७-ससार। १-दशवकालिक, ४ासू०२१८।। २-वही, 6 // 36-39 / ३-सुश्रुत, सूत्र-स्थान, 1137 : तासां स्थावराश्चतुर्विधाः-वनस्पतयो, वृक्षा, वीरुध, ओषधय इति / तासु अपुष्पाः फलवन्तो वनस्पतयः / पुष्पफलवन्तो वृक्षाः / प्रतानवत्यः स्तम्बिन्यस्य वीरुधः / फलपाकनिष्ठा ओषधयः इति / ४-दशवकालिक, 4 / 08 / ५-देखो-दशवकालिक (भा०२), पृष्ठ 391-92, श्लोक 35 का टिप्पण /