Book Title: Dashvaikalik Ek Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
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________________ 214 * दशवकालिक : एक समीक्षात्मक अध्ययन स्नान दो प्रकार से होता था-देश सनान तथा सर्व स्नान / देश स्नान में मस्तक को छोड़कर शेष अंग धोए जाते थे और सर्व स्नान में मस्तक से एड़ी तक सर्वाङ्ग स्नान किया जाता था। स्नान करने में उष्ण या ठंडा दोनों प्रकार का जल काम में आता था तथा अनेक प्रकार के पदार्थ भी काम में लाए जाते थे : (1) स्नान-यह एक प्रकार का गन्ध-चूर्ण था, जिससे शरीर का उद्वर्तन किया जाता था। (2) कल्क-स्नान करने से पूर्व तेल-मर्दन किया जाता और उसकी चिकनाई को मिटाने के लिए पिसी हुई दाल या आंवले का सुगन्धित उबटन लगाया जाता था। इसे कल्क, चूर्ण-कषाय या गन्धाट्टक कहा जाता था। (3) लोध्र-यह एक प्रकार का गन्ध-द्रव्य था, जिसका प्रयोग ईषत्-पाण्डुर छवि करने के लिए किया जाता था। (4) पद्मक-पद्माक-पद्म-केसर / ' आमोद-प्रमोद तथा मनोरंजन : स्थान-स्थान पर इन्द्रजालिक घूमते थे और लोगों को आकृष्ट करके अपनी आजीविका चलाते थे / 2 नट विद्या का प्रचार था नाट्य मण्डलियाँ स्थान-स्थान पर घूमा करती थीं। ये मनोरंजन के प्रमुख साधन थे। शतरंज खेला जाता था। नालिका एक प्रकार का चूत था। चतुर-खिलाड़ी अपनी इच्छानुसार पासा न डाल दे—इसलिए पासों को नालिका द्वारा डाला जाता था। ___ नगर के समीप उद्यान होते थे। वे अच्छे वृक्षों से सम्पन्न और उत्सव आदि में बहुजन उपभोग्य होते थे। लोग यहां उद्यानिका-सहभोज करते थे। 6 बालक भी स्थान-स्थान पर मनुष्य-क्रीड़ा करते थे। गो, महिष, कुक्कुट और लावक को आपस में लड़ाया जाता था और हजारों व्यक्ति उसे देखने एकत्रित होते थे। १-जिनदास चूर्णि, पृ. 232 / २-वही, पृ० 321 / ३-वही, पृ० 322 // ४-दशवकालिक 3 / 4 / ५-वही, 3 / 4 / ६-जिनदास चूर्णि, पृ० 22 / ७-वही, पृ० 171,72 / ८-वही, पृ० 262 /