Book Title: Dashvaikalik Ek Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
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________________ 122 दशवकालिक : एक समीक्षात्मक अध्ययन - : के साधुओं ) को दान देने के निमित्त भोजन बनाते थे। महाराष्ट्र के राजा दान काल में सम्मानरूप से दान देते थे।' भोज: जीमनवार अनेक प्रकार के होते थे-(१) आकीर्ण जीमनवार-यह राजकुल के किसी व्यक्ति या नगर-सेठ द्वारा किया जाता था। इसमें भोजन के लिए आने वालों की संख्या अधिक होती थी। (2) अवमान जीमनवार इसमें स्वपक्ष और पर-पक्ष के लोग ही भाग लेते थे और इसमें जीमने वालों की संख्या निश्चित होती थी। ... मृत्यु पर तथा पितर आदि देवों के प्रीति-सम्पादनार्थ संखडि (भोज) किए जाते थे। उन्हें 'कृत्य' कहा जाता था। मज्झिमनिकाय (11448) में इसे 'संखति' कहा है। मनुष्य का स्थान : उत्तम जाति वाले पुरुष नीच जाति वालों को घृणा की दृष्टि से देखते थे। वे उनके पैरों में नहीं पड़ते थे।४ . _.. जाति, कुल, कर्म, शिल्प और कुछ विशेष रोग आदि के आधार पर मनुष्य तिरस्कृत माने जाते थे।५ जाति से म्लेच्छ जाति / कुल से—जारोत्पन्न / कर्म से त्यक्त पुरुषों द्वारा सेवनीय / शिल्प से चर्मकार / रोग से—कोढी / १-(क) दशवकालिक 5 / 1 / 48 / (ख) अगस्त्य चूर्णि : की कोति इस्सरो पवासागतो साधुसद्देण सम्बस्स आगतस्स सक्कारणनिमित्तं 4.40 दाणं देति, रायाणो वा मरहट्ठगा दाणकाले अविसेसेण देति / २-(क) दशवकालिक चूलिका 26 : (ख) हारिभद्रीय टीका, पत्र २८०।३-हारिभद्रीय टीका, पत्र 214 / ४-जिनदास, चूर्णि, पृ० 316 : . जातीए इडिढगारवं वहति, जहा हं उत्तमजातीओ कहमेतस्स पादेलगिहा मित्ति। ५-वही, पृ० 323H . असूयाइ जाइतो कुलो कम्मायो सिप्पयो वाहिओ वा भवति जाइओ जहा तुम मेच्छजाइजाती, कुलो जहा तुमं जारजाओ, कम्मो जहा तुमं जढेहिं भयणीज्जो, सिप्पयो जहा तुमं सो चम्मगारो, वाहिओ जहा तुमं सो कोढिओ।