Book Title: Dashvaikalik Ek Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
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________________ 5. व्याख्या-ग्रन्थों के सन्दर्भ में : सभ्यता और संस्कृति 223 कर्तव्य और परम्परा : - माता-पिता कन्या के घर के चुनाव में बहुत सतर्क रहते थे। दक्षिणापथ में मामे की लड़की से विवाह किया जा सकता था, उत्तरापथ में नहीं। दक्षिण और उत्तर के खान-पान, रहन-सहन आदि भिन्न थे।२ .... गाँवों में अकेली स्त्री भी इधर-उघर आ-जा सकती थी, परन्तु नगरों में वह दूसरी स्त्री को साथ ले जाती थी। व्यापार-यात्रा: ___ लोग व्यापार के लिए दूर-दूर देशों में जाते थे। जब पुत्र देशान्तर के लिए प्रस्थान करता तब पिता शिक्षा के शब्दों में कहता-"पुत्र ! अकाल-चर्या और दुष्ट-संसर्ग से बचने का सदा सर्वत्र प्रयत्न करना।" वे बार बार इस शिक्षा को दोहराते थे / 4.. पुस्तक: पुस्तकें पाँच प्रकार की होती थीं-: (1) गंडी-वह मोटाई और चौड़ाई में सम होनी थी। १-दशवैकालिक, 9 // 3 // 13 / २-हारिभद्रीय टीका, पत्र 22 : . - यथा दक्षिणापथेमातुलदुहिता गम्या उत्तरापथे पुनरगम्यैव, एवं भक्ष्याभक्ष्यपेया पेयविभाषा कर्तव्येति / ३-वही, पत्र 22: पुरवरधर्म:-प्रतिपुरवरं भिन्नः क्वचित्किञ्चिद्विशिष्टोऽपि पौरभाषांप्रदानादि लक्षणः सद्वितीया योषिद्गेहान्तरं गच्छतीत्यादिलक्षणो वा। ४-जिनदास चूर्णि, पृ० 340 / / ५-हारिभद्रीय टीका, पृ० 25 : गंडी कच्छवि मुट्ठी संपुडफलए तहा छिवाडी अ। . एयं पोत्थयपणयं पण्णत्तं वीअराएहिं // बाहल्लपुहुत्तेहिं गंडी पोत्यो उ तुल्लगो दीहो / कच्छवि अंते तणुओ मज्झे पिहलो मुणेअव्वो // चउरंगुलदीहो वा वट्टागिति मुट्ठिपोत्थगो अहवा। चउरंगुलदीहो चिम चउरस्सो होई 'विण्णेओ // संपुडओ दुगमाई फलगा वोच्छं छिवाडिमेत्ताहे। तणुपत्तोसिअरूवो होइ छिवाडी बुहा बेंति // दीहो वा हस्सो वा जो पिहुलओ होइ अप्पबाहल्लो। तं मुणिम समयसारा छिवाडिपोत्यं भगतीह //