Book Title: Dashvaikalik Ek Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
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________________ 5. व्याख्या-ग्रन्थों के सन्दर्भ में : सभ्यता और संस्कृति 219 नामे दो प्रकार के होते थे-गोत्र-नाम और व्यक्तिगत-नाम / व्यक्ति को इन दोनों से सम्बोधित किया जाता था। अवस्था की दृष्टि से जिसके लिए जो उचित होता था, उसी प्रकार उसे सम्बोधित किया जाता था।' राज्य-व्यवस्था : / / राजाओं के अनेक भेद थे-मण्डलीक, महामण्डलीक आदि-आदि / जो बद्ध-मुकुट होते, उन्हें राजा, मंत्री को राजामांत्य और सेनापति आदि को 'दंडनायक' कहा जाता था। राजा केवल क्षत्रीय ही नहीं होते थे। कई क्षत्रीय होते पर राजा नहीं, कई राजा होते पर क्षत्रीय नहीं। जिसमें लक्ष्मी देवी का चित्र अंकित हो वैसा वेष्टन बांधने की जिसे राजा के द्वारा अनुज्ञा मिली हो, वह श्रेष्ठी कहलाता है। हिन्दू राज्यतंत्र में लिखा है कि इस सभा (पौर सभा) का प्रधान या सभापति एक प्रमुख नगर-निवासी हुआ करता था जो साधारणतः कोई व्यापारी या महाजन होता था। आजकल जिसे मेयर कहते हैं, हिन्दुओं के काल में वह 'श्रेष्ठिन्' या 'प्रधान' कहलाता था / अगस्त्यसिंह स्थविर ने 'श्रेष्ठी' को वणिक् -ग्राम का महत्तर कहा है। इसलिए यह पौराध्यक्ष नहीं, नैगमाध्यक्ष होना चाहिए / वह पौराध्यक्ष से भिन्न होता है / सम्भवतः नैगम के समान ही पौर संस्था का भी एक अध्यक्ष होता होगा जिसे नैगमाध्यक्ष के समान हो श्रेष्ठो कहा जाता होगा, किन्तु श्रेणी तथा पूग के साधारण श्रेष्ठी से इसके अन्तर को स्पष्ट करने के लिए पौराध्यक्ष के रूप में श्रेष्ठी के साथ राजनगरी का नाम भी जोड़ दिया १-दशवैकालिक 7117,20 / २-जिनदास चूर्णि, पृ० 360 : ३-वही, पृ० 208 / ४-वही, पृ० 209 / ५-निशीथ भाज्य, गाथा 2503, सभाज्यचूर्णि भाग 2, पृष्ठ 450 जम्मि य पट्टे सिरियादेवी कज्जति तं वेंटणगं, तं जस्स रणा अमुन्नातं सो सेट्ठी भण्णति / ६-हिन्दू राजतंत्र, दूसरा खण्ड, पृ० 132 / ७-(क) अगस्त्य चूर्णि : ... राजकुललद्धसम्माणो समाविद्धवेटठो वणिग्गाममहत्तरो य सेट्टी। ...... (ख) जिनदास चूर्णि, पृ. 360 / ८-धर्म-निरपेक्ष प्राचीन भारत की प्रजातंत्रात्मक परम्पराएँ पृ० 106 / . 208 / .