Book Title: Dashvaikalik Ek Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
View full book text
________________ 5. व्याख्या-ग्रन्थों के सन्दर्भ में : सभ्यता और संस्कृति 217 देना और एक शराब मात्र ही पानी / इसे एक दिन, दो दिन मा अमुक दिनों तक भोजन मत देना।" शिक्षा: शिक्षाओं के अनेक केन्द्र थे / स्वर्णकार, लोहकार कुम्भकार आदि का कर्म, कारीगरी, कौशल, बाण-विद्या, लौकिक कला, चित्रकला आदि-आदि के स्थान-स्थान पर शिक्षा केन्द्र होते थे। वहाँ विविध शिल्पों की शिक्षा दी जाती थी : अनेक स्त्री-पुरुष वहाँ शिक्षा आप्त करते थे। वहाँ के संचालक-गुरु उन विद्यार्थियों को शिल्प में निपुण बनाने के लिए अनेक प्रकार से उपालम्भ, ताड़ना-तर्जना देते थे। राजकुमार भी इसके अपवाद नहीं थे। सांकल से बांधना, चाबुक आदि से पीटना और कठोर-वाणी से भर्त्सना करना-ये विधियाँ अध्यापन-काल में अध्यापक-वर्ग द्वारा विहित मानी जाती थी। विद्यार्थी अपने गुरुजनों को भोजन-वस्त्र आदि से सम्मानित करते थे। सम्बोधन: विभिन्न देशों में भिन्न-भिन्न प्रकार के 'सम्बोधन-शब्द' प्रचलित थे: (1) हले—इस आमंत्रण का प्रयोग वरदा तट में होता था तथा महाराष्ट्र में तरुण ____ स्त्री का सम्बोधन शब्द था। (2) अन्ने—इसका प्रयोग महाराष्ट्र में तरुण-स्त्री तथा वेश्या के सम्बोधन में ____ होता था। (3) हला—यह शब्द लाट देश में प्रचलित था और इससे तरुण-स्त्री को सम्बोधित किया जाता था। १-जिनदास चूर्णि, पृ० 311,312 / २-(क) दशवैकालिक, 9 / 2 / 13,14 / (ख) जिनदास चूर्णि, पृ०३१३,३१४ / .३-वही, पृ० 314 / ४-वही, पृ० 240 : तत्थ वरदा तडे हलेत्ति आमंतणं / ५,६-अगस्त्य चूर्णि: हले अन्नेत्तिं मरहट्ठेसु तरुणत्यी आमंतगं। . ७-जिनदास चूर्णि, पृ० 250 : ___ अण्णेत्ति मरहट्ठविसये आमंतणं, दोमूलक्खरगाण चालुक्य अमेति। ८-अगस्त्य चूर्णि: हलेत्ति साडेसु /